पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२७०

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द्वात्रिंशोऽध्यायः २५१ ॥५५ एते ययातिवंशस्य बभूवुर्वशवर्धनः । कीतता द्युतिमन्तस्ते ये लोकान्धारयन्ति -वै लभन्ते च वरान्पञ्च दुर्लभान्ब्रह्मलौकिकान् । आयुः पुत्रा धनं कीतिरैश्वर्यं भूतिरेव च ५६ धारणाच्छूवणाच्चैव पञ्चवर्गस्य धीमतम् । यथोक्ता लौकिकाश्चैव ब्रह्मलोकं व्रजन्ति वै ॥५७ चत्वार्याहुः सहस्राणि वर्षाणां च कृतं युगम् । तस्य तावच्छती संध्या संध्यांशश्च तथाविधः ।।५८ कृते वै प्रक्रियापादश्चतुःसहस्र उच्यते । तस्माच्चतुःशतं संध्या संध्यांशश्च तथाविधः ।।५६ त्रेता त्रीणि सहस्राणि संख्यया मुनिभिः सह । तस्यापि त्रिशती संध्या सध्यांशस्त्रशतः स्मृतः ॥६० अनुषङ्गपादस्त्रेतायास्त्रिसहत्रस्तु संख्यया । द्वापरे द्वे सहत्र तू वर्षाणां संप्रकीfततम् ६१ तस्यापि द्विशती संध्या संध्यांशो द्विशतस्तथा । उपोद्धतस्तृतीयस्तु द्वापरे पाद उच्यते ॥६२ कल वर्षसहस्र’ तु प्राऽऽहुः संख्याविदो जनाः । तस्यापि शतिका संध्या संध्यांशः शतमेव च ॥।६३ संहारपादः संख्यांतश्चतुर्थो वै कलौ युगे । ससंध्यानि सहांशानि चत्वारि तु युगानि वै ॥६४ एतद्वादशसाहस्र चतुर्युगमिति स्मृतम् । एवं पादैः सहस्राणि श्लोकानां पञ्च पव च ६५ वर्णन नहीं कर सकते, जो सब राजषि उन युगों के साथ व्यतीत हो चुके हैं ।५३-५४। ये सब ययाति वंश के वंश को बढ़ाने वाले कान्तिमान् संसार का पालन करने वाले कहे गये हैं । इन्होंने दुर्लभ ब्रह्म, लौकिक आयु, पुत्र, धन, कीfत ओर ऐश्वर्य विभूति नामक पाँच वरों को प्राप्त किया था । वे अपनो प्रजा के पाँचों वग की बातों को ( अभियोगों को ) सुना करते थे और अपनी विद्वान् प्रजा का पालन किया करते थे, इससे वे सभी राजागण ब्रह्मलोक को गये ५५-५७चार हजार वर्षों का कृतयुग होता है, जिसमें उतनी ही संध्या और उतने ही संध्यांश होते है । कृतयुग का प्रक्रियापाद चार हजार वर्षों का कहा गया है; इसलिये चार सौ संध्याये और उतने ही संख्यांश होते हैं। त्रेता युग संख्या में तीन हजार वर्षों का होता है । मुनियों ने कहा कि , इसमें तीन सौ वर्ष की संख्याएँ और तीन सौ वर्ष के ही संध्यांश होते है ।५८ ६०। त्रेता का अनुपङ्कपाद संख्या में तीन हजार का है । द्वापर के दो हजार वर्ष कहे गये हैं। इसमें भी दो सौ वर्ष की संख्याएँ और उतने वर्षों के संध्यांश होते हैं । इस तरह तीसरा उपोद्धातपाद द्वापर का कहा गया है ।६१-६२। संख्या जानने वाले विद्वानों ने कलियुग को एक हजार वर्षों का कहा है । इसमें भी सौ वर्ष की संख्याएँ और सौ वर्ष के संध्यांश होते है। कलियुग में चौथा सहार पाद होता हैं । सध्या और संध्यांशों के साथ चारों युग वारह हजार वर्षों के कहे गये है ।६३-६४६। इस तरह युग पादों का परिमाण दस हजार वर्षों का है और