पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६९

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२५० वायुपुराणम् ४५ ॥४६ I४७ ॥४८ ॥४६ परस्परं युगानां च ब्रह्मक्षत्रस्य चोद्भवः । यथा वै प्रकृतिस्तेभ्यः प्रवृत्तानां यथाक्षयम् जामदग्न्येन रामेण क्षत्रे निरवशेषिते । क्रियन्ते कुलटः सर्वाः क्षत्रियैर्वसुधाधिपैः । दिवंगतानहं तुभ्यं कीर्तयिष्ये निबोधत। ऐडमिक्ष्वाकुवंशस्य प्रकृति परिचक्षते । राजानः श्रोणिबन्धास्तु तथाऽन्ये क्षत्रिया भुवि ऐडवंशेऽथ संभूतास्तथा चेक्ष्वाकवो नृपाः । तेभ्य एव शतं पूर्ण कुलानामभिषेचितम् तावदेव तु भोजानां विस्तरो द्विगुणः स्मृतः । भोजं तु त्रिशतं क्षत्रं चतुर्धा तद्यथादिशम् तेष्वतीतास्तु राजानो ब्रुवतस्तान्निबोधत । शतं वै प्रतिविन्ध्यानां हैहयानां तथा शतम् धार्तराष्ट्रास्त्वेकशतमशीतिर्जनमेजयः। शतं वै ब्रह्मदत्तानां कुलानां वयणां शतम् ततः शतं तु पौलानां शतं फशिकुशादयः। तथाऽपरं सहस्र तु येऽतीतः शशबिन्दवः । ईजानास्तेऽश्वमेधैस्तु सर्वे नियुतदक्षिणैः [xएवं राजर्षयोऽतीतः शतशोऽथ सहस्रशः । मनोर्वैवस्वतस्येह वर्तमानेऽन्तरे शुभे पुनरुक्तबहुत्वाच्च न शक्यं विस्तरेण तु।] ^ एवं संक्षेपतः प्रोक्तो न शक्या विस्तरेण तु । वक्तुं राजंषयः कृत्स्ना येऽतीतास्तैर्युगैः सह ५० ५१ ५.२ ५३ ५४ है। जमदग्नि सुत परशुराम ने क्षत्रियों को मार डाला; क्योंकि वे क्षत्रिय राजा कुलटाओं की संख्या बढ़ा रहे थे। अब हम उन स्वर्गगत राजाओं का विवरण कहते हैं, सुनिये ।४४-४६। इक्षत्राकु वंश का मूल ऐड़ वंश है । श्रोणिवन्ध राजागण इक्ष्वाकु वशीय नृपगण तथा औरऔर क्षत्रियो ने इस पृथ्वी पर ऐड़ वंश में जन्म ग्रहण किया था । उन्ही नृपतियों से पूर्ण सो कुलों का अभिषेक अर्थात् विस्तार हुआ था ।४७ ४८ । तभी उनके कुलों से भोज कुल का वंश विस्तार में दूना था । जैसा कि कहा है भोजकुल में प्रायः तीन सौ क्षत्रिय थे, जो चार भागों में विभक्त थे । उनमें जो राजा बीत चुके हैं, उनके बारे में कहते है, सुनिये ४३। प्रतिविन्ध्य हैहय और धार्तराष्ट्र के सौ-सौ कुल अतीत हुये हैं, जनमेजय के अस्सी कुल, ब्रह्मदत्त, वीर्यं, पौल के सौ-सौ कुल तथा काशिकुश के भी सौ कुल और शशविन्दुओं के हजार कुल अतीत हुये हैं । इन सभी राजाओं ने बहुत दक्षिणा देकर अश्वमेघ यज्ञों को किया है ५०-५२ वैवस्वत मनु के मगलजनक वर्तमान काल मे जो सैकडों हजार राजप व्यतीत हो चुके हैं, उनका आवृत्ति और अविकता के भय से विस्तार के साथ वर्णन नही किया जा सकता है । इसलिये उनका वर्णन संक्षेप में किया गया । हम विस्तार के साथ उनका xघनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति । इदमर्घनास्ति क ग घ ङ. पुस्तकेषु ।