पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

द्वात्रिंशोऽध्यायः २४६ ऋषयश्चैव देवाश्च कलि प्राप्य सुदारुणम् । तप इच्छन्ति भूयिष्ठं कतु धर्मपरायणः । अवतारान्कल प्राप्य करोति च पुनः पुनः ॥३७ एवं कालान्तरे सर्वे येऽतीता वै सहस्रशः । वैवस्वतेऽन्तरे तस्मिन्देवराजर्षयस्तथा ३८ देवापिः पौरवो राजा अनुश्चेक्ष्वाकुवंशजाः । महायोगबलोपेताः कालान्तरमुपासते ।।३६ क्षोणे कलियुगे तस्मिस्तिष्ये त्रेतायुगे कृते । सप्तषभिश्चैव सrधं भाव्ये त्रेतायुगे पुनः । गोत्राणां क्षत्रियाणां च भविष्यास्ते प्रीतिताः द्वापरान्ते प्रतिष्ठन्ते क्षत्रिया ऋषिभिः सह । कृते त्रेतायुगे चैव तथा क्षीणे च द्वापरे ४१ [#ब्रह्मक्षत्रस्य चोच्छेदा द्विजार्थाय कलौ स्मृताः । एवमेतेषु सर्वेषु युगेषु तमशस्तथा ४२ सप्तfषभिस्तथा साध संतानार्थ युगे युगे । एवं क्षत्रस्य चोच्छेदाः संबन्धाद्वै द्विजैः स्मृताः] । + नराः पातकिनो ये वै वर्तन्ते ते कलौ स्मृतः ॥४३ मन्वन्तराणां सप्तानां सन्तानर्था श्रुतिः स्मृतः। एवमेतेषु सर्वेषु युगक्षयक्रमस्तथा । ।।४० ।।४४ करता है, उसे महान् पुण्य प्राप्त होता है । इसलिये देव गण भी स्त्रगं जाकर पृथ्वी तल पर उतर आते हैं और कठोर कलिकाल को पाकर वे देव-ऋषि गण, धूपंरत होकर अधिक तप करने की इच्छा करते है । कृलियुग का जब-जब अवतार होता है, तब-तब वे ऐसा ही करते है ।३६-३७। इस प्रकार कालान्तर में अर्थात् वैवस्वत मन्वन्तर में जो सब हजारों की संख्या में देव राजषि आदि व्यतीत हो गये थे, वे सब तथा देवपि, पुरुवंशीय राजा, मनु और इक्ष्वाकु के कुल में उत्पन्न होने वाले महा योगबल से युक्त होकर दूसरे काल में जन्म ग्रहण करते हैं ३८-३६। सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि के ( आगामी ) क्षीण हो जाने पर सप्तषियों के साथ फिर होने वाले त्रेता युग में वे ही होने वाले क्षत्रियों के वंशों के कारण कहे जाते है ।४०। कृत, नेता और द्वापर युग के क्षीण हो जाने पर अर्थात् द्वापर के अन्त में क्षत्रिय गण ऋषियों के साथ रहते हैं। ब्राह्मण क्षत्रियों का जो विनाश होता है, वह कलियुग में द्विजादि के लाभ के लिये ही । इस प्रकार भी क्रमशः सभी युगों में सप्तषियों के साथ भावी सन्तान के लिये वे समय-समय पर उत्पन्न होते है। इस तरह द्विजों के लिये क्षत्रियों का विनाश होता है, जो पातकी मनुष्य हें वे कलि युग में रहते है ।४१-४३। सप्त मन्वन्तरों की सन्तामों के लिये श्रुति और स्मृति का निर्माण हुआ है। इसी प्रकार इन सब में युगों का विनाश होता रहता

  • घनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति । + इदमर्घ ख. ग. घ. ड. पुस्तकेषु नास्ति ।

फo८३२