पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६७

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२४८ ५ C दयषय ऊचुः महातेजा महाकायो महावीर्यो महाद्युतिः । भीषणः सर्वभूतानां कथं कालश्चतुर्मुखः २७ महादेव उवाच एष कालश्चतुभूतश्चतुदंष्ट्रश्चतुर्मुखः । लोकसंरक्षणार्थाय अतिक्रामति सर्वशः। २८ नासाध्यं विद्यते चास्य सर्वस्मिन्सचराचरे । कालः सृजति भूतानि पुनः संहरति मत् ॥२e सर्वे कालस्य वशगा न कालः कस्यचिद्वशे । तस्मात्तु सर्वभूतानि कालः कलयते सदा ३० विक्रमस्य पदान्यस्य पूर्वोक्तान्येकसप्ततिः । तानि मन्वन्तराणीह परिवृसयुगक्रमात् । ३१ एकं पदं परिक्रम्य पदानामेकसप्ततिः । यदा कालः प्रक्रमते तदा मन्वन्तरक्षयः एवमुक्त्वा तु भगवान्देवषपितृदानवान् । नमस्कृतश्च तैः सर्वैस्तत्रैवान्तरधीयत। ३३ एवं स कालो भगवान्देवर्षिपितृदानवान् । पुनः पुनः संहरते सृजते च पुनः पुनः ३४ अतो मन्वन्तरे चव देवर्षिपितृदानवैः । पूज्यते भगवानीशो भयात्कालस्य तस्य वे ३५ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन कलौ कुर्यात्तपो द्विजाः । प्रपन्नस्य महदेवं तस्य पुण्यफलं महत् । तस्माद्देवा दिवं गत्वा अवतीयं च भूतले ३६ 1३२ देवता और ऋषि बोले-देव, अत्यन्त तेजस्वी, दीर्घ शरीर, महाबली अतिशय दीप्तिशाली । और सब जीवों के लिये भयंकर काल चार मुख वाले कंसे हुए ।२७॥ महादेव जी बोले-ये काल चार मुंह वाले, चार दांत वाले और चार मूत वाले है । संसार की रक्षा के लिये ये सव का अतिक्रमण कर जाते हैं अर्थात् किसी की अपेक्षा नहीं करते है ।२८ इस चराचरमय संसार में इनके लिये असाध्य कुछ नही है ! काल की सृष्टि करते है और फिर क्रम से उनका सहार भी कर डालते है ।। सभी काल के वश मे हैं; किन्तु काल किसी के भी वश में नहीं हैं। इसलिये काल ही सभी जीवों का संकलन (शासन) करते है। पहले कहे गये इक्कीस युग काल का एक डग हैं । घूमने वाले युगों के क्रम से वे ही मन्वन्तर कहलाते है। एक-एक पैर चलकर जब काल इवकीस डग रखते हैं, तब मन्वन्तर का क्षय होता है ।३०-३२ शंकर ने इस प्रकार देवता, ऋषि, पितर और दानवों से कहा । यह सुनकर प्रसन्न हो श्रोताओ ने भगवान् को नमस्कार किया तब भगवान् वही अन्साहित हो गये 1३ ३३। भगवान् काल इसी प्रकार देवता ऋषि, पितर और दानयों का वारवार सृजन और संहार करते है । इसीलिये भगवान् ईश प्रति मन्वन्तर में काल के भय से डरे हुये देवता, ऋषि, पितर और दानवों से प्रेजित होते है ।३४३५॥ ब्राह्मण ! इसलिये कलियुग में खूव यत्नपूर्वक तपस्या करनी चाहिये । जो तपस्या द्वारा महादेव को प्राप्त