पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२५५

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२३६ वायुपुराणम् २६७ वेदान्षडङ्गानुद्धृत्य सांख्यान्योगांश्च कृतनशः । तपश्च विपुलं तप्वा दुःश्वरं देवदानवैः ॥२६३ अथैर्दशार्धसंयुक्तैगूढसप्राज्ञनिमितम् । वर्णाश्रमकृतेर्धर्भविपरीतं क्वचित्समस् २६४ भृत्यथैरध्यवसितं पशुपाशविमोक्षणम् । सर्वेषामाश्रमाणां तु मया पाशुपतं व्रतम् ।। उत्पादितं शुभं दक्ष सर्वपापविमोक्षणम् २६५ अस्य वीर्णस्य यत्सम्यक्फलं भवति पुष्कलम् । तदरतु ते महाभाग मानसस्त्यज्यतां ज्वरः ॥२६६ एवमुक्त्वा महादेवः सपत्नीकः सहानुगः। अदर्शनमनुप्राप्तो दक्षस्यामितविक्रमः अवाप्य च तदा भागं यथोक्तं ब्रह्माण भयः । ज्वरं व सर्वधर्मज्ञ बहुधा व्यभजत्तदा । शान्त्यर्थं सर्वभूतानां शृणुध्धं तत्र व द्विजाः २६८ शोभितापो नागानां पर्वतानां शिलारुष्कः । अपां तु नीलिकां विद्यान्निर्मोकं भुजगेष्वपि ॥२&e खोरकः सौरभेयाणामूषरः पृथिवीतले । इभान्तासपि धर्मज्ञ दृष्टिप्रत्यवरोधनम् रन्ध्रोद्भूतं तथाऽश्वानां शिखोद्भदश्च बहिणम्। नेत्ररागः फोफिलानां ज्वरः प्रोक्तो महात्मभिः॥३०१ अजानां पित्तभेदश्च सर्वेषामिति नः श्रुतम्। शुकानामपि सर्वेषां हिमिका प्रोच्यते ज्वरः ॥ शार्दूलेष्वपि वे विप्राः अमो ज्वर इहोच्यते ३०२ ३०० सौ वाजपेय यज्ञों के फलभागी होओगे ।२e ३। दक्ष ! छवयों अङ्गों के साथ वेदों का उद्धार करके एवं पूर्ण सांख्य-योग का उद्धार करके देव-दानवों से साथ बड़ी कठिन तपस्या करके, पाँच अथ से संयुक्त होने के कारण जो गूढ सामान्य जनों की समझ के बाहर है. वह वर्णाश्रमप्रतिपादक धर्म से कहीं विपरीत और कहीं अनुकूल है, वेदाभिप्राय से संपादित करके मैंने सभी आश्रमवासियों के लिये पर्णपाण विमोचन पाशुपत व्रत उत्पन्न किया है, जो शुभ और सभी पापो को नष्ट करने व'ला है । इस व्रत के करने से जो समीचीन फल होता है, उसका सम्पूर्ण फल तुम्हे हो । महाभाग ! तुम मानसिक संताप को छोड वो ।२e४-२६६। इस प्रकार कहर अतिपराक्रमी महादेव अपनी पत्नी और अनुचरों के साथ दक्ष की आंखों से ओझल हो गये । उस समय ब्रह्मा द्वारा यथोक्त भाग को प्राप्त कर अखिल घर्मवेत्ता महादेव ने ज्वर को कई भागों में विभक्त किया । ब्राह्मणों ! सब जीवो के शान्त्यर्थं । उसे सुनिये ।२९७२९९। नागों के लिये शभिताप पर्वस के लिये शिलारोग, जल के लिये शैवाल और साँपों के लिये केंचुल ज्वर समझना चाहिये। गौओं के लिये खुरका रोग, पृथ्वी के लिये कसरहथियो के लिये दृष्टिव्याघात, घोड़ों के लिये रभध्रजनित रोग, मयूरों के लिये शिखा ( चन्द्रक ) विकाश का काल और कोकिलों के लिये नेत्ररोग महात्माओं के द्वाआ ज्वर कहा गया है ।३०० ३०२। हे विप्रो ! हम लोगों ने सुना है कि, सब बकरों के लिये पित्तभेद और सब शुकों के लिये