पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२४१

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२२२ वायुपुराणम् शङ्खचक्रगदापण दीप्तकार्मुकधारिणम् । परश्वसिधरं देवं महारौद्रं भयावहम् १२४ घोररूपेण दीप्यन्तं चन्द्रार्धकृतभूषणम् । वसानं चर्म वैयाघ्रो महाधिरनिस्रवम् १२५ दंष्ट्राकरालं विभ्रान्तं महावक्त्रं महोदरम् । विद्युज्जिह्व प्रलम्बोष्ठं लम्बकर्णं दुरासदम् ॥१२६ कुलिशोद्योतितकरं भाभिज्वलितमूर्धजम् । ज्वालामालापरिक्षिप्तं मुक्तादामविभूषितम् ॥१२७ तेजसा चैव दीप्यन्तं युगान्तमिव पावकम् । आकर्णदारितास्यान्तं चतुर्दष्टं भयानकम् ॥१२८ महाबलं महातेजं महापुरुषमीश्वरम् । बिश्वहतुं महाकायं महान्यग्रोधमण्डलम् । युगपच्चन्द्रशतवर्दीप्यन्तं मन्मथाग्निवत् १२६ चतुर्महास्यं सिततीक्ष्णदण्डं महोग्रतेजोवलपौरुषढचम् । युगान्तसूर्याग्निसहत्रभसं सहस्रचन्द्रमलकान्तकान्तम । प्रदीप्तसवौषधिमन्दराभं सुमेरुकैलासहिमाद्रितुल्यम् १३० युगाभं महावीर्यं चारुनासं महाननम् । प्रचण्डगण्डं दीप्ताक्षमग्निज्वालाविलाननम् १३१ मृगेन्द्रकृत्तिवसनं महाभुजगवेष्टितम् । उष्णीषिणं चन्द्रधरं क्वचिदुग्रं क्वचित्समम् १३२ १२१-१२३। शंखचक्रगदा और पालिश किये हुये धनुष को भी धारण किये हुये था । उसके हाथ मे फरसा और खङ्ग भी था । उसका रौद्र रूप देखने मे भयावह जान पड़ता था; किन्तु उसका घोर रूप देदीप्यमान हो रहा था । वह अर्द्ध चन्द्र से भूषित था, रक्तमय वधंबर पहने हुये था, उसके बड़े विकराल दाँत थे, ऊसका पेट और मुंह दोनों ही विशाल थे लम्बे ओठों के बीच उसकी जीभ बिजली की तरह लपलपा रही थी । उसके कान भी बड़ेबड़े थे और वह दुरासद था ।१२४१२६ वच से उसके हाथ चमक रहे थे और प्रभा घिचय के कारण केशराषाि भी प्रदीप्त हो रही थी । ज्वालमाला की भाँति वह मुक्तामाला पहने हुये ओर प्रलयकालीन अग्नि की तरह अपनी कान्ति से दीप्त हो रहा था। उसके मुंह कान तक फटे हुये थे, जिसमें चार भयानक दौत दिखाई देते थे ।१२७-१२८ वह महाबलो महातेजस्वी महापुरुष ईश्वर, विश्वहर्ता और विशाल शरीर वाला था। महान् वटवृक्ष की तरह उसका देह विस्तार था । यह शतचन्द्र के समान उज्ज्वल और कामाग्नि की तरह दीप्यमान था ।१२ । उसे चार बड़े बड़े मुंह थे जिसमे चमकते हुये दाँत थे । तेज, बल और पौरुष की अधिकत मे वह अत्यन्त उग्र था। प्रलयक'लीन हजारों सूर्य और अग्नि की तरह वह भास्कर, सुमेरु कैलाश और हिमालय की तरह विशाल था. हजारो चन्द्र की निर्मल कान्ति की तरह वह कमनीय था और निखिल ओषधियों से युक्त मन्दराचल की तरह प्रदीप्न था ।१३०। वह युगान्त कालीन सूर्य की तरह आभावाला, महाबली, मुन्दर नासिका युक्त, महानन प्रचण्ड-गण्ड, दीप्ताक्ष. ज्वालामुखी की तरह मुखगह्रवाला, व्याघ्र चर्मधारी, विशाल साँपों से वेष्टित, पगड़ी पहने हुये, चन्द्रधारी, उच्चावच,