पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२२९

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वायुपुराणम् संवत्सराश्च स्थानानि कालावस्थाभिमानिनः । निमेषाश्च कलाः कष्ठा मुहूर्ता वै दिनक्षपाः ।।१३ एतेषु स्थानिनो ये तु कालावस्थास्ववस्थिताः । तन्मयत्वात्तदात्मानस्तन्वक्ष्यामि निबोधत ।।१४ पर्वण्यास्तिथयः संध्या पक्षा मासार्धसंज्ञितः । *निमेषाश्च कलः काष्ठा मुहूर्ता वे दिनक्षपाः ।। द्वावर्धमासौ मासस्तु द्वौ मासावृतुरुच्यते ॥ ।।१५ ऋतुत्रयं चाप्ययनं द्वेऽयने दक्षिणोत्तरे । संवत्सरः सुमेकस्तु स्थानान्येतानि स्यानिनाम् १६ ऋतवः सुमेकपुत्रा विज्ञेया ह्यष्टधा तु षट् । ऋतुपुत्राः स्मृताः पञ्च प्रजास्त्वार्तवलक्षणाः ॥१७ यस्माच्चैवऽऽर्तवेयास्तु जायन्ते स्थाणुजङ्गमः । आर्तवाः पितरश्चैव ऋतवश्च पितामहः ।।१८ सुमेकात्तु प्रसूयन्ते म्रियन्ते च अजातयः । तस्मात्स्मृतः प्रजानां वै सुमेकः प्रपितामहः १ स्थानेषु स्थानिनो होते स्थानात्मानः प्रकीतिताः । तदाख्यास्तन्मयत्वाच्च तदत्सनश्च ते स्मृताः ।।२० प्रजापतिः स्मृतो यस्तु स तु संवत्सरो मतः । संवत्सरः स्मृतो ह्यग्निौ तमित्युच्यते द्विजैः ” २१ ऋतात्तु ऋतवो यस्माज्जज्ञिरे ऋतवस्ततः । मासः षड्ऋतवो ज्ञेयास्तेषां पवऽऽर्तः सुताः ॥२२ द्विपदां चतुष्पदां चैव पक्षिसंसर्गतामपि । स्थावराणां च पञ्चानां पुण्यं कार्तवं स्मृतम् ।।२३ और दिन-रात आदि काल की व्यवस्था में जो स्थानाभिमान हैं. वे उसी स्वरूप में वर्तमान रहने के कारण उन्ही के तुल्य है। इनके सम्बन्ध मे भी मैं कहता हू, मुनिये ।११-१४। पर्व, तिथि, सन्ध्या. महीने का आघा पक्ष, निमेष, कला, काष्ठ, मुहूतंदिनरातदो पक्षों का एक मासदो महीने की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का अयन, दक्षिणोत्तर भेद से दो अयन और संवत्सर अथवा सुमेक होता है ।१५१६। ये सभी स्थानघारियों के स्थान हैं अर्थात् कालरूप अवयवी के अवयत्र हैं । ऋतुगण सुमेक के पुत्र है. जो छ: या आठ भागों में विभक्त हैं । ऋतुओं के पाँच पुत्र है, जो प्रजागण के बीच आतंव नाम से प्रसिद्ध हैं । यतः चर और अचर आर्तव से उत्पन्न हैं; अतः इनके पिता आतंव हुये और ऋतुगण पितामह ।१७-१८सुमेक से जो प्रजागण । उत्पन्न हुये वे मर गये; इसलिये सुमेक मृत प्रजाओं के प्रपितामह कहलाये । ये यथःस्यानस्यित स्थान हैं । अतः स्थानात्मक कहे जाते हैं । उसी रूप में वर्तमान रहने के कारण वे उन स्थानों के तुल्य है और उसी नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रजापति ही संवत्सर हैं और संवत्सर ही अग्नि या ऋत है, ऐसा विद्वानों ने कहा है । ऋत से ऋतुओं का जन्म हुआ है, इसीलिये वे ऋतु कहलाया । छहों श्रऋतुओ में मासों का ‘समावेश हो जाता है इसलिये मास भी ऋतु स्वरूप हैं। ऋतुओं को आर्तव नमक पच पुत्र हैं ।१€-२२॥ द्विपद, चतुष्पद, पक्षी, सरीसृप और स्थावरादि पांचभौतिको का जो पुष्पकाल है, वही आतंव कहलाता है । अऋतुत्व और

  • इदमर्घ नास्ति क. पुस्तके ।