पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२३०

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त्रिंशोऽध्यायः २११ ऋतुत्वमार्तवत्वं च पितृत्वं च प्रकीतितम् । इत्येते पितरो ज्ञेया ऋतवश्चाऽऽर्तबश्च ये ।।२४ सर्वभूतानि तेभ्योऽथ ऋतुकालाद्विजज्ञिरे। तस्मादेतेऽपि पितर आर्तवा इति नः श्रुतम् २५ मन्वन्तरेषु सर्वेषु स्थितः तालिभिज्ञानिनः । स्थनाभिमानिनो होते तिष्ठन्तीह प्रसंयमत् ॥२६ अग्निष्वात्ता बर्हिषदः पितरो द्विविधः स्मृताः। जक्षते च पितृभ्यस्तु द्वे कन्ये लोकविश्रुते ।२७ मेना च धरिणी चैव धाभ्यां विश्वमिदं धृतम्। पितरस्ते निजे कन्ये धर्मार्थ प्रवदुः शुभे ।। ते उभे ब्रह्मवादिन्यौ योगिन्यौ चैव ते उभे २८ अग्निष्वात्तास्तु ये प्रोक्तास्तेषां मेना तु मानसी । धारणी मनसा चैव कन्या बहिषदां स्मृता ॥२६ मेरोस्तु धारणं नाम पयर्थ व्यसृजञ्शुभम् । पितरस्ते बहिषदः स्मृता ये सोमपीथिनः ॥३० अग्निष्वात्तास्तु तां सेनां पत्नीं हिमवते ददुः । स्मृतास्ते वै तु दौहित्रास्तद्दौहित्रान्निबोधत ॥३१ (+मेना हिमवतः पत्नी मैनाकं साऽन्वसूयत । गङ्गा सरिद्वरा चैव पत्नी या लवणोदधेः । मैनाकस्यानुजः क्रौवः क्रौञ्चद्वीपी यतः स्मृतः ) ३२ मेरोस्तु धारणो पत्नी दिव्यौषधिसमन्वितम् । भन्दरं सुषुवे पुत्रं तिस्रः कन्याश्च विश्रुताः ।।३३ आर्तवत्व पितृव कहलाता है; इसलिये ऋतु और आर्तव पितर कहे गये है ।२३२४सुना है कि सकल भूत ऋतुकाल में 'ऋतु और आर्तव से उत्पन्न हुये है; इसलिये आतंव भी पितर है । सभी मन्वन्तरों में ये स्थनाभिमानी और कालाभिमानी संयमपूर्वक वर्तमान रहते है । अग्निष्वात्ता और वहषद् नामक दो तरह के पितर है । इन पितरो ने लोकप्रसिद्ध दो कन्याओं को उत्पन्न किया ।२५-२७उनका नाम था मेना और घारिणी । इन्हीं दोनों ने इस संसार को धारण किया है । ब्रह्मवादिनी और परमयोगिनी उन कन्याओं को पितरों ने धर्म के लिये दान कर दिया । अग्निष्वात्ता की मानस पुत्री मेना थी और बहषद की मानस कन्या धारिणी थी । सोमपीथी इषद पितर ने सुन्दरी धारिणी को मेरु से ब्याह दिया और अग्निष्वात्ता ने हिमालय से मेना का व्याह कर दिया। अब उनके पौत्रो की कथा सुनिये ।२८-३१। हिमालय की पत्नी मेना से मैनाक नामक पुत्र उत्पन्न किया । उसे नदियों में श्रेष्ठ एक गंगा नाम की बेटी भी हुई, जो लवण-सगर की पत्नी है ! मैनाक का एक छोटा भाई भी था, जिसका नाम क्रच था । इसी के नाम पर क्रौंच द्वीप हुआ है ।३२ । मेरुपत्न धारणी ने दिव्य ओषधियों से युक्त मन्दार नामक पुत्र को उत्पन्न किया एवं वेला, नियति और आयति' नामक तीन पुत्रियों को भी जम दिया ।३३। इनमे, आयति से धाता ने और नियति से विधाता ने +धनुश्चिह्नान्तशैतग्रन्थाः छ. पुस्तके नास्ति ।