पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२१५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

१८६ IU ३३ इत्युक्ते यत्स्थिरं तस्य शरीरस्यास्थिसंज्ञितम् । तद्विवेश ततो भूमिस्तस्माद्भूः शर्व उच्यते ॥२e' तस्मात्कुर्वीत नो विद्वान्पुरीषं सूत्रमेव वा । न च्छायायां न सोपाने स्वच्छायां नापि मेहयेत् ॥३० शिरः प्रावृत्य कुर्वोत अन्तर्धाय तृणैर्महीम् । य एवं वर्तते भूमौ तं शर्वो न हिनस्ति वै। ।।३१ ततोऽब्रवीत्पुनर्बह्मा तं देवं नीललोहितम् । ईशान इति यत्प्रोक्तं चतुर्थं नाम ते सया ३२ चतुर्थस्य चतुर्थी स्याद्वायुर्नाम्ना तनुस्तव । इत्युक्ते यच्छरीरस्थं पञ्चधा प्राणसंज्ञितम् विवेश तं तदा वायुमीशानो वायुरुच्यते । तस्मादेनं परिवदेदयतं धथुमीश्वरम् । एवं युक्तमथेशानो नैव देवो हिनस्ति तम् N३४ ततोऽब्रवीत्पुनर्जह्मा तं देवं धूम्रलोहितम् । यत्ते पशुपतीत्युक्तं मय नामेह पञ्चमम् । । पञ्चमी पवमस्यैषा तनुर्नाम्नाऽग्निरस्तु ते ३५ इत्युक्ते यच्छरीरस्थं तेजस्तस्योऽणसंज्ञितम् । विवेश तत्तदा ह्यग्निस्तस्मात्पशुपतिः पतिः ॥३६ चन्द्रमस्तु स्मृतः सोमः तस्याऽऽत्म ह्योषधीगणः । एवं यो वर्तते विद्वान्सदा पर्वणि पर्वणि । न हन्ति तं महादेव एवं वन्देत तं प्रभुम् ३७ गोपायति दिवाऽऽदित्यः प्रजा नक्तं तु चन्द्रमाः । एकरात्रे समेयातां सूर्याचन्द्रमसावुभौ । अमावास्यानिशायां तु तस्यां युक्तः सदा वसेत् ३८ तीसरा नाम हमने शवं कहा है, उसका शरीर भूमि होगा । ऐसा कहने पर उनके शरीर का जो अस्थि नामक स्थिर पदार्थ था, उसस भूमि प्रवेश कर गयी । इसलिये भूमि शर्वे कहलाती है ।२८-२&। इसलिये ज्ञानवान् व्यक्ति छाया, सोपान अथवा स्वच्छ स्थान मे मूत्र-मल आदि का त्याग न करे। पहले सिर नवा ले और पृथ्वी पर तृणधास रखकर मल-मूत्र त्याग करे । पृथ्वी के सम्बन्ध में जो ऐसा आचरण करता है, उसकी हिंस शर्वे देवता नही करते हैं ।३०-३१ ब्रह्मा ने फिर नीललोहित से कहा—आपका चौथा नाम हमने ईशान कहा है, उस चौथे शरीर की चौथी मूति वायु होगी । ब्रह्मा के ऐसा कहते हो उनके शरीर में जो प्राणापानादि पंच वायु थे, उनमें सांसारिक वायु प्रवेश कर गयी; इसलिये ईशान वायु कहलाते है ।३२-३३३ जो व्यक्ति इस विराट वायु की स्तुति करते है, ईशान देव उसकी हिंसा करते है ।३४। ब्रह्मा ने फिर धूम्र लोहित देव से कहा—हमने आपका पाँचव नाम पशुपति कहा है, इसलिये उस पाँचवे शरीर की पाँचवीं मूति अग्नि होगी ।३५। ऐसा कहते ही उनके शरीरस्य उष्ण नमक तेज में अग्नि प्रवेश कर गया । तब से अग्नि का नाम पशुपति हुआ। चन्द्रमा सोम कहलाते हैं, उनकी आत्मा ओषधियाँ है । जो विद्वान् इस तत्त्व को प्रव्येक पर्व में हृदयङ्गम करता है, महादेव उसकी हिंसा नही करते । इसलिये महादेव की वन्दना श्रेयस्कर है ।३६३७॥ आदित्य दिन में और चन्द्रमा रात में प्रजाओं की रक्षा करते है। सूर्य और चन्द्रमा जिस रात्रि