पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२१२

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सप्तविंशोऽध्यायः १६३ अथ सप्तविंशोऽध्यायः महादेवक्षनुवर्णनम् ऋषय ऊचुः अस्मिन्कल्पे त्वया चोक्तः प्रादुर्भावो महत्मनः। महादेवस्य रुद्रस्य सधकैर्मुनिभिः सह ॥१ सूत उवाच १३ उत्पत्तिरादिसर्गस्य मया प्रोक्ता समासतः। विस्तारेणास्य वक्ष्यामि नामानि तनुभिः सह २ पत्नीषु जनयामास महादेवः सुताम्बहून् । कल्पेऽष्टमे व्यतीते तु यस्मिन्कल्पे तु तच्छुणु कल्पादौ चाऽऽत्मनस्तुल्यं सुतं प्रध्यायतः प्रभोः। प्रादुरासीत्ततोऽङ्केऽस्य कुमारो नीललोहितः । तं दधे सुस्वरं घोरं निर्दहन्निव तेजसा ४ दृष्ट्वा रुवन्तं सहसा कुमारं नीललोहितम् । किं रोदिषि कुमारेति ब्रह्मा तं प्रत्यभाषत ५ सोऽब्रवीद्देहि मे नाम प्रथमं वै पितामह । रुद्रस्त्वं देव नास्नाऽसि इत्युक्तः सोऽरुदत्पुनः ॥६ अध्याय २७ महादेव के शरीर का वर्णन ऋषि गण बोले—हे सूत ! इस कल्प में आपने साधक मुनियों के साथ महात्मा महादेव रुद्र का प्रादुर्भाव बताया है ।१। सूत जी बोले - मैंने बताई। अब विस्तार के साथ महादेव के संक्षेप में आदि सर्ग की उत्पति नामों को उनके विभिन्न शरीरों के साथ कह रहा हूँ ।२। अष्टम कल्प के बीत जाने पर जिस कल्प में महादेव ने अपनी पत्नियों में अनेक पुत्रों को उत्पन्न किया, उसको अब सुनिये ।। क्रुप के आदि में प्रभु ब्रह्म अरमतुल्य पुत्र का पान कर रहे थे कि उनकी गोद में एक नीललोहित कुमार प्रकट हो गया । उन्होंने उस कुमार को तेज द्वारा दग्घ करके घोर और सुस्वर वना दिया ।४। उस नीललोहित कुमार को सहसा रोते पूछा-क्यों रोते हो ? ।५। कुमार ने कहा है पितामह, आप पहले हमारा नामकरण देखकर ब्रह्मा ने फ०२५