पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२११

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१८२ वायुपुराणम् १४१ मुखत्तु नवमात्तस्य लु6ारः नवमः स्मृतः । धूम्रो वै वर्णतश्चापि दृश्य दुरुच्यते। दशग्मासु मुखतस्य लूफरः प्रकुरुच्यते । नभश्चैव रामश्च वर्भा सदतिरो मनुः {४२ मुखदेकदशासस्य एकारो भक्षुरुच्यते । शिश्न वर्णचैव पि , वर्ण उच्यते ४३ द्वादशातु मुखातस्य ऐफारो नाभ उच्यते । पिशङ्ग भमझानः पिशङ्ग अनुच्यते ४४ त्रयोदशाधुखातस्य ओरो वर्ण उच्जते । (+q२४१ नयुक्5 ऑफ ययं उत्त १४५ चतुर्दशान्मुखातस्य ओकारो वर्ण उच्यते । वरब्रूरो वर्षतश्छंद मनुः सदईणच्यते) इत्येते मनवश्चैव स्वबरा बणश्च कल्पतः। विज्ञेया { ह था। स्वरतो वर्णतस्दथ परस्परसवर्णाश्च स्वरा यस्माबूत हि वै । तस्यै त ददश्वयस्तु नीतितः सवर्णाः सदृशाश्चैव यस्माज्जातास्तु कल्पजाः । तस्मात्प्रजानां कोकेऽस्मिन्सवः सर्वसंधयः ॥४६ भविष्यन्ति यथाशैलं बर्णाश्च स्यायतऽर्थतः । अन्यासात्संधयश्चैव ताश्चेयः स्वर इति ॥५० १४६ ।।४७ १४८ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते स्त्ररोहतिर्नाम पत्रिशोऽध्यायः ।२६। ४० नवम मुख से नयां लूवर उत्पन्न हुआ । यह धून वर्ण है और मनु भी धूम्र कहलाता है ।४१॥ दरावे मुंह से ढंकार उत्पन्न हुआ । यह भी तैयार के तुल्य धूम्र वर्ण हैं और रासायणित मनु गहलाता है ।४२।। एकादशवें मुख से पिशङ्ग वर्ण एकार उत्पन्न हुआ और वर्णानुरूष पिंशी । मनु हुआ ।४३। बारहवे मुग ने पिशङ्ग वर्ण और भस्मतुल्य ऐकार उत्पन्न हुआ एवं पिशंगी गनु कहलाया । ४। तेरहवें मुस रो पञ्स वर्ण से युक्त उत्तम वर्ण ओकार की उत्पत्ति हुई और मनु उत्तम हुये ।४। संदर्भ हचे मुख से कवीर वर्ण ओंकार उत्पन्न हुआ और मनु सायण ।४५। कल्प-यल्प गे सभी भाति मनु और स्वर वर्ण का ऐसा ही स्प हन हे जो स्वर और वर्ण के अनुसार यथातत्व जानने योग्य हे ।४७। चूंचि रो रवर परस्पर समान वर्गों के अनुसार है इसलिये वणं की समानता के मरण उनका परस्पर अवय होता है और प्रत्येक कल्पों में इनका समान आकार और वर्ण होता है इसलिये इन प्रजालोक मे सब सन्धियाँ सवर्ण होती है, भविष्य में भी स्वभाव और अर्थ के अनुसार ये एक प्रकृति के होंगे इलिये उच्चारण की शत्रता के कारण इन स्वरो मे संविया भी होगी ।४८-५० श्री वायुभहापुराण मग स्वरोत्पत्ति नामक छत्रीसच अध्याय समाप्त ।२६।। +धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. ग. घ. पुस्तकेषु नास्ति ।