पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२०४

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पञ्चविंशोऽध्यायः १८५ I७४ ब्रह्मणः सोऽददात्प्राणान्त्यजः स तदा प्रभुः । प्रहृष्टवदनो रुद्रः किंचित्प्रत्यागतासवम् (?) अभ्यभाषत्तदा देवो ब्रह्माणं परमं वचः ७१ उपयाचस्व मां जहान्स्मर्तमर्हसि चाऽऽत्मनः । स च वेत्थाऽऽत्मज रुद्र प्रसादं कुरु मे प्रभो ७२ श्रुत्वा स्विदं वचस्तस्य प्रभूतं च मनोगतम् । पितामहः प्रसन्नात्मा नेत्रैः फुल्लाम्बुजप्रभैः ७३ ततः प्रत्यागतप्राणः स्निग्धगम्भीरया गिरा । उवाच भगवान्ब्रह्मा शुद्धजाम्बूनदप्रभः। भो भो वद महभाग आनन्दयसि से मनः । को भवान्विश्वमूर्दतस्त्वं स्थित एकादशात्मकः u७५ एवमुक्तो भगवता ब्रह्मणाऽनन्ततेजस( । ततः प्रत्यवद्रुद्रो झभिवाद्याऽऽत्मजैः सह यत्ते वरमहं ब्रह्मन्पादितो विष्णुन सह । पुत्रो मे भव देवेति त्वतुल्यो वाऽपि घूर्वहः लोकेषु विश्रुतैः कार्यं सर्वंवश्वमसंभवैः । विषादं त्यज देवेश लोकांस्त्वं द्रष्टुमर्हसि एवं स भगवानुक्तो ब्रह्मा प्रीतमना भवत् । चंद्रं प्रत्यवदद्भ्यो लोकान्ते नीललोहितम् साहाय्यं मम कार्यार्थं प्रजाः सृज मया सह । बीजं स्त्री सर्वभूतानां तत्प्रपन्नस्तथा भब ।। बाढमित्येव तां वाणीं प्र जज़्) क्षयः ७६ ७७ ॥७८ ७ ८० रूप से स्थित हैं। पद्मयोनि के ललाट से उत्पन्न एकदशामक प्रभु त्रिशूलधारी नीललोहित ने साधु अचरण करनेवाले अतिशय महान् ब्रह्मा को फिर प्राणदान दिया । आत्मज स्वरूप प्रसन्नवदन प्रभु रुद्र ने ब्रह्मा को प्राणदान दिया और प्राण के लौट आने पर ब्रह्मा से कहा ।६७-७१‘ब्रह्मन् ! अपने को स्मरण कीजिये, हमसे याचना कीजिये और हम ( रुद्र ) को अपना पुत्र समझिये, हम पर प्रसन्न हो इये । रुद्र के इस मनो नुकूल वचन को सुनकर ब्रह्मा अत्यन्त प्रसन्न हो गये। उनके दोनों नेत्र विकसित कमल की तरह खिल गये । -तपाये हुये सोने की तरह देदीप्यमान भगवान् ब्रह्मा ने प्राण के लौट आने पर स्निग्ध-गम्भीर स्वर मे कहा-महाभाग ! आप कोन है, जो हमरे मन को आनन्दित कर रहे है । ? आप गिनती मे ग्यारह और विश्वमूत की तरह विराजमान है ? आप स्पष्ट शब्दो में कहिये । अनन्त तेजस्वी भगवान् ब्रह्मा ने जब इस प्रकार कह, तव रुद्र ने आत्मजों के साथ उनका अभिवादन करके कहा ७२-७६। आपने विष्णु के साथ जो हमसे वर माँगा था कि देव ! आप हमारे उपयुक्त पुत्र हों अथवा आपकी तरह सुयोग्य पुत्र हों, विश्वासम्भव ! लोकप्रसिद्ध उन्हीं पुत्रों के द्वारा हम कार्य सम्पादन करेगे । अतः देवेश, विषाद को छोड़ये । आप सृष्टि करने के योग्य हैं संसार की 19७-८ इन बातों को सुनकर ब्रह्मा प्रसन्न हो गये और प्रलय में नीललोहित स्वरूप में व्यक्त होने वाले रुद्र से कहा-आप हमारे कार्य में सहायता दीजिये और हमारे साथ प्रण की सृष्टि कीजिये । आप निखिल भूत और जगत् के कारण है; अतएव इस कार्य के लिये उद्यत होइये शांकर ने "ऐसा ही होकहकर ब्रह्मा, को बात को मान लिया । ७९-८० अनन्तर कृष्ण मृगचर्म से । " फo-२४