पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२०५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

१८६ ततः स भगवान्ब्रह्मा कृष्णाजिनविभूषितः। मनोऽग्रे सोऽसृजद्देवो भूतानां धारणां ततः ।। जिह्वां सरस्वतीं चैव ततस्तां विश्वरूपिणीम् ८१ भृगुमङ्गिरसं दक्षु पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम् । वसिष्ठं च महातेजाः ससृजे सप्त मानसान् ८२ पुत्रानात्मसमानन्यान्सोऽसृजद्विश्वसंभवान् । तेषां भूयोऽनुमार्गेण गावो वक्त्राद्विजज्ञिरे ८३ ओंकारप्रमुखास्वेदनभिमन्यपश्च देवताः । एवमेतान्यथा प्रोक्तान्ब्रह्मा लोकपितामहः ८४ दक्षाद्यान्मनसान्पुत्रान्प्रोवाच भगवान्प्रभुः। प्रजाः सृजत भद्रं वो रुद्रेण सह धीमता ८५ अनुगम्य महात्मानं प्रजानां पतयस्तदा। वयमिच्छामहे देव प्रजाः स्रष्टुं त्वया सह । ब्रह्मणस्त्वेष संदेशस्तव चैव महेश्वर ८६ तैरेवमुक्तो भगवान्रुद्रः शोवाच तान्प्रभुः । ब्रह्मणाऽऽत्मजा सहा प्राणान्गृह्य च वै सुराः ८७ कृत्वाऽग्रजोऽग्रजानेतान्ब्राह्मणान्नात्मजान्मम । जह्मादिस्तम्बपर्यन्तान्सप्त लोकान्ममा(दा)त्मकान् ।। भवन्तः स्त्रष्टुर्महन्ति वचनात्सम स्वस्ति वः तेनैवमुक्तः प्रत्यूचू रुद्रमात्रं त्रिशूलिनम् । यथाऽऽज्ञापयसे देव तथा तद्वै भविष्यति ८६ अनुमान्य महादेवं प्रजानां पतयस्तदा। ऊचुर्दशं महात्मानं भवञ्श्रेष्ठ: प्रजापतिः ।। त्वां पुरस्कृत्य भद्रं ते प्रजाः स्त्रक्ष्यामहे वयम् Ne० ८८ विभूषित होकर ब्रह्मा ने पहले मन को फिर आंतो उसके बाद जिह्वानियासिनी विश्व को धारण को और रूपिणी सरस्वती को बनाया । अनन्तर भृगु , अंगिरा, दक्ष, पुलस्त्य, पुलह, तु, वसिष्ठ आदि सात महातेजस्वी पुत्रों को बनाया ।८१-८२। इनके अतिरिक्त अनेकानेक जगत्-कर्ता पुत्रों की मानस सृष्टि करने के बाद उनके मुख से गौओं की सृष्टि हुई । उसके बाद ओंकार प्रमुख वेद और उनके अभिमानी देवता वने। तब पितामह ब्रह्मा ने पूर्वोक्त दक्षादि मानस पुत्रो से कहा-‘आपका कल्याण हो । आप लोग धीमान् रुद्र के साथ मिलकर प्रण की । सृष्टि करें ।" ८३-८५। तव प्रजापतिगण रुद्र के अनुगामी हो कर बोले—'देव ! हम लोग आपके साथ मिलकर प्रजा की सृष्टि करना चाहते हैं । महेश्वर ! आपके प्रति ब्रह्मा का यही सन्देश है ।८६। उन लोगो के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भगवान् रुद्र ने उन लोगों से कहा —‘ब्रह्मनन्दन देवगण ! आपभे जो अग्रज है, वे हमसे प्राण ग्रहणकर और ब्रह्मतनयों को साथ लेकर ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यन्त सातों लोकों की सृष्टि करे । आप लोग हमारी आज्ञा से ऐसा कर सकते है ! आप सबका कल्याण हो । " I८७-८८। यह सुनकर उन लोगों ने त्रिशूलधारी रुद्र से कहा-देव ! जैसे आप कहते हैं, वैसा ही होगा । इस प्रकार प्रजापतियों ने महादेव का अनुमोदन कर महात्मा दक्ष से कहा