पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२०१

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१८२ ४४ चक्राते रूपसादृश्यं विष्णोजिष्णोश्व सत्तमौ । कुतसtदृश्यरूपौ तौ तावेवाभिमुखौ स्थितौ ।।४० ततस्तौ प्रोचतुर्दैत्यौ ब्रह्माणं दारुणं वचः । अशकं युध्यमानानां मध्ये ये प्राश्निको भव ॥४१ ततस्तौ जलराणाविश्य संस्तभ्य: स्वस्मायया । चनतुस्तुमुलं शुद्धं यस्य येनेप्सितं तदा ४२ तेषां तु युध्यमानन्तां दिव्यं वर्षशतं गतम् । न च युगदोस्रो छोग्यं संग्यमर्तत ॥४३ लक्षणद्वयसंस्थानहूपदन्ते स्थितेङ्गितौ । सादृश्यमुग्मन द्याः ध्यानसुपागस आमेखलं च गात्रं च ततो मन्त्रमुपाहरत् १४५ तपतस्त्वभवत्कन्या विश्वरूपसपुत्थितf । पभेल्बुवदनऽख्या पद्महस्ता शुभा सती । तां दृष्ट्वा व्यथिते दैत्यौ भयाद्वर्णविजितौ ४६ ततः प्रोवाच तां कन्यां प्रह्मा पधुरया गिरा । काऽत्र त्वमन्तव्या ब्रूहि सत्यमनिन्दिते साम्ना संपूज्य सा कन्या ब्रह्माणं प्राञ्जलिस्तदा। नोहिनीं विद्धि मां मायां विष्णोः संदेशकारिणोम् । त्वया संकीर्यमानाऽहं ब्रह्मन्प्राप्ता त्वरायुल। अस्याः प्रीतमन भ्रह्म गौणं नाम चकार ह ।४६ ४७ को मुख से उतपन्न कर कहा-तुम दोनों ब्रह्मा पनी रक्षा करो ।३६-३९। इधर मधुकैटभ ने विष्णु जिष्णु की आगमन वार्ता जानकर विष्णु-जिष्णू - की ही तरह अपना रूप बना लिया और उसी रूप में ब्रह्मा के सम्मुख उपस्थित होकर उन दोनों (दैत्यों ) ने ब्रह्मा से कठोर स्वर में कहा -"हम दोनों परस्पर युद्ध करते है, बीच में तुम निर्णायक वनो’ ।४०-४१। इसके बाद उन दोनो ने जल में प्रवेश कर अपनी माया से जल को स्तब्ध कर दिया । इसके बाद वे दोनों विष्णु जिष्णु से अभिलपित रूप से युद्ध करने लगे । उनके युद्ध करते हुये दिव्य सौ वर्ष बीत गये, किन्तु रणमद से गत्त उनमे से कोई भी युद्ध से विरत नही हुआ ।४२-४३।। उनका आकार प्रकार और संस्थान दि एक प्रकार का था एवं गति स्थिति भी उनकी समान ही थी तथा उन दोनों का स्वरूप | भी एक प्रकार का ही था, इससे ब्रह्म व्याकुल हो व्यान करने लगे । ब्रह्मा ने तब दिव्य दृष्टि से उनके रहस्य को समझा और कमलमेरार के वने सूक्ष्म कवच द्वारा उन दोनों के ( विष्णु जिष्णु के ) नाभि से ऊपर के शरीर को बाँधकर मन्त्रों का पाठ करने लगे ।४४४५। मन्त्र . जपते हुये ब्रह्म को एक इन्दुवदन, पद्म-सुन्दरी, प्रियदर्शना, कमलहस्ता कन्या उत्पन्न हुई । उसे देखते ही दोनो दैत्यों के प्राण सूख गये ।४६। ब्रह्मा ने उस कन्या। से मधुर शब्दों में कहा--"यथार्थं सुन्दरि, कहो तुम कौन हो, मैं तुम्हें क्या समझे ?" उस कन्या ने वेदोक्त विवि से ब्रह्मा की पूजा तर हाथ जोड़ कर कहा-मुझे आप विष्णु की आज्ञानुतनी मोहिनी माया समझे । ब्रह्म । आपने मेरा स्मरण किया, इसाईलये मैं शीघ्र ही यहाँ पहुँच गयी। सन्तुष्ट होकर ब्रह्मा ने उसका । एक गौणं नाम रखा ।४७-४€। हमारे बुलाये जाने पर तुम द्वारा