पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२००

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पञ्चविंशोऽध्यायः १६१ अथ दीर्घण कालेन तत्राप्यप्रतिमावुभौ । महाबलौ महासस्वौ भ्रातरौ मधुकैटभौ ३० (+तत्पद्मं तरुणार्काभं दीप्ताक्षौ तमशालिनौ । कम्पयामासतुर्वीरौ हसन्ताविव निर्भयौ । बभञ्जतुश्च पत्राणि तावुभौ मधुकैटभौ ) ।।३१ ऊचतुश्चैव वचनं भक्ष्यो वै नौ भविष्यसि । एवमुक्त्वा तु तौ तस्मिन्नन्तर्धानं गतावुभौ ।।३२ दारुणं तु तयोर्भावं ज्ञात्वा पुष्करसंभवः । माहात्म्यं चाऽऽत्मनो बुद्ध्वा विज्ञातुमुपचक्रमे ॥३३ कणकाघटनं भूयो नाभ्यजानाद्यदा गतिम्। ततः स पलनालेन अवतीर्य रसातलम् । कृष्णाजिनोत्तरासङ्ग ’ ददृशेऽन्तर्जले हरिम्। ३४ स च तं बोधयामास विबुडं चेदमब्रवीत् । भूतेभ्यो मे भयं देव त्रायस्वोत्तिष्ठ शं कुरु ३५ ततः स भगवान्विष्णुः सप्रहासमर्दः। न भेतव्यं न भेतव्यमित्युवाच मुनिः स्वयम् ३६ यस्मात्पूर्वं त्वया चोक्तं भूतेभ्यो से महद्भयम् । तस्माद्भूतादिवाक्यैस्तौ दैत्यौ त्वं नाशयिष्यसि ॥३७ भूभुवः स्वस्ततो देवं विविशुस्तमयोनिजम् । ततः प्रदक्षिणं कृत्वा तमेवऽऽसीनमागतम् ३८ गते तस्मिस्तुतोऽनन्त उद्गीर्यं भ्रातरौ मुखात् । विष्णु विष्णु व प्रोवाच ब्रह्माणमभिरक्षताम् " मधुकैटभयोर्भाव तयोरागमनं पुनः ३€ जा बैठे। इसके बहुत दिन बाद वहाँ मधुकैटभ नामक दो अतुलनीय बलशाली भ्राताओं ने तरुण सूर्य की तरह चमकनेवाले स पद्म को हिलाना प्रारम्भ कर दिया ।२९-३१। उन दोनों की आंखें अन्धकार में चमक रही थीं और वे दोनों ही वीर हंस-हंस कर निर्भयभाव से पद्मपत्रों को तोड़ रहे थे। उन दोनों ने ब्रह्मा से हा -"तुम हमारे भक्ष्य बन ” यह कह कर वे अन्तद्धन हो गये ।३२। पद्मयोनि ब्रह्मा ने उनके कठोर भाव को और अपने पराक्रम को जानकर तात्कालिक रहस्य जानना चाहा; किन्तु वे तब तक उनकी गति’ विधि या पद्मपत्रों का तोड़ा जाना समझ सके । नहीं वे उस कमलनाल के सहारे रसातल में उतर गये। जल के भीतर उन्डोने कृष्णाजिन और उत्तरीयधारी विष्णु को देखा । उन्होंने विष्णु को जगाया और उनके जागने पर कहा- “‘देव ! हमें भूतों से भय हो रहा है, उठिये, हमें बचाइये, हमारा कल्याण कीजिये ।” ३३३५। शत्रु को दमन करने वाले स्वयं भगवान् विष्ण हंसते हुये बोले-कुछ चिन्ता नहीं । उरने की कोई बात है । जिसलिये पहले पहल आपने कहा कि हमें भूतों से भय हो रहा है; इसलिये उन देयों नहीं का भूतादि वाक्य से आप ही विनाश करेंगे । अनन्तर भूलकभुवर्लोक और स्वलोंक प्रदक्षिणा करके बैठे हुये ब्रह्म में प्रवेश कर गये। उनके चले जाने पर अनन्त भगवान् ने विष्णु और जिष्णु नामक दो भ्राताओ +धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति ।