पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१९८

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पवंशोऽध्यायः १७६ प्रतोऽहमवया भक्त्या शाश्वतक्षरयुक्तया । भवन्तौ माननीयौ वै मम ह्यहंतरावुभौ । युवाभ्यां किं ददाम्यद्य वराणां वरमुत्तमम् ७ तेनैवमुक्ते वचने ब्रह्माणं विष्णुरब्रवीत् । क्रूहि शूहि महाभाग वरो यस्ते विवक्षितः ८ प्रजाकामोऽस्म्यहं विष्णो पुत्रमिच्छामि धूर्वहंस् । ततः स भगवान्ब्रह्मा वरेसुः पुत्रलिप्सया ॥e अथ विष्णुरुवाचेदं प्रजाकामं प्रजपति । वीरमप्रतिमं पुत्रं यत्वमिच्छसि धूर्वहम् १० पुत्रत्वेनाभियुङ्क्ष्व त्वं देवदेवं सहेश्वरम् । स तस्य वाक्यं संपूज्य केशवस्य पितामहः ११ ईशानं वरदं रुद्रमभिवाद्य कृताञ्जलिः। उवाच पुत्रकामस्तु वाक्यानि सह विडणुन १२ यदि मे भगवान्प्रीतः पुत्रकामस्य नित्यशः । पुत्रो मे भव विश्वात्मन्वतुल्यो दऽपि घूर्वहः १३ नान्यं वरमहं वने प्रीते त्वयि महेश्वर । तस्य तां प्रार्थनां श्रुत्वा भगवान्भगनेत्रहा १४ निष्कल्मषममायं च बाढमित्यब्रवीद्वचः। यदा कार्यसशरम्भे कर्मलितव सुव्रत ।।१५ अनिष्पत्तौ व कार्यस्य क्रोधस्त्वां समुपैष्यति। आत्मैकादश ये रुख़ विहितः प्राणहेतवः १६ सोऽहमेकादशात्मा वै शूलहस्तः सहानुगः । ऋषिमित्रो महात्मा वै ललाटङ्कविता तदा ॥१७ और मृदु वाणी से बोले -"हिरण्यगर्भ और कृष्ण ! सुनोतुम दोनों की इस नित्य अक्षरों से युक्त भक्ति से परम प्रसन्न हूँ। आप दोनों मेरे मान्य और पूज्य है, आप लोगों को मै कौन सा उत्तम वर हुँ ।६-१० शिव की ऐसी बातें सुनकर विष्णु ब्रह्मा से कहा-महाभाग ! माँगो, जो वर तुमको अभीष्ट हो उसको माँग । तदनन्तर वर चाहने भगवान् कहा-विष्णो ! मुझे पुत्र की इच्छा है, मैं ऐसा पुत्र चाहता हूँ वाले ब्रह्म ने जो मेरे भार व हत्या कर दे। विष्णु ने पुच्छं प्रजापति से कहा कि, यदि तुम अन्नतिम, वी2 और धुरन्धरा पुत्र को चाहते हो तो देव-देव महेश्वर को ही अपना पुत्र वनने के लिये कहो । उस पितामह ने केशव उस सुझाव को मान लिया और स्वयं ईशान, वरदाता, रुद्र का अभिवादन कर हाथ जोड़कर पुत्रप्राप्ति की इच्छा विष्णु के फहा–भगवन् पुत्र की कामना करने वाले मुझ पर यदि आप प्रसन्न हैं तो से साथ ! विश्वात्मन् ! कार्यक्षम दे अपने समान धुरन्धर पुत्र । महेश्वर ! आपके प्रसन्न हो जाने पर दूसरा वर मै नही चाहता ' १११३३। भग के नेत्र को फोड़ देने वाले भगवान् ने ब्रह्म की उस प्रार्थना को सुनकर स्पष्ट शब्दों में कहा-'ऐसा ही होगा । मुव्रत! तुम जत्र िसी कार्य यो आरम्भ करोगे और उस काम में अड़चन आ जने पर जब तुमको क़ध होगा तो उस समय सब प्राणियो के जीवन के कारण जो एकादश रुद्र कहे गये है, जो मेरे ही रूप है उनके रूप में शूलपाणि भहात्मा और ऋषि एकादशरम/ मैं तुम्हारे ललाट प्रकट होऊँगा ।१४-१७। पहले ब्रह्मा के ऊपर इस प्रकार अपनी अनुपम प्रसन्नता दिखाकर फिर विष्णु से बोले,