पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१९४

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चतुविंशोऽध्यायः १७५ जटिने दण्डिने तुभ्यं व्यालयज्ञोपवीतिने। नमोऽस्तु नृत्यशोलाय वाद्यनृत्यप्रियाय च ।।१४२ मन्यवे गतिशोलाय सुगfत गायते नमः । कटककराय भीमाय चोग्ररूपधराय च १४३ बिभीषणाय भीमाय भगप्रथनाय च। सिद्धसंघातगीतय महाभागाय वै नमः ॥१४४ नमो मुक्ताट्टहसाय क्ष्वेडितास्फोटिताय च। नदते कूर्दते चैव मनः प्रमुदिताय च १४५ नमोऽद्भुताय स्वपते धावते प्रस्थिताय च। ध्यायते नृम्भते चैव तुदते द्रवते नमः १४६ चलते क्रीडते चैव लम्बोदरशरीरिणे । नमस्कृताय कम्पाय मुण्डाय विकराय च ।।१४७ नम उन्मत्तवेषाय किंकिणीकाय वै मनः। नमो विकृतवेषाय क्रूरोग्रामर्षणाय च ।।१४८ अप्रमेयाय दीप्ताय दीप्तये निर्गुणाय च । नमः प्रियाय वाद्य मुद्रामणिधराय च १४६ (*नमस्तोकाय तनवे गुणैरप्रतिमाय च। नमो गणाय गुह्याय गम्याय गमनाय च) १५० लोकधात्र त्वियं भूमिः पादौ सज्जनसेवितौ । सर्वेषां सिद्धयोगानामधिष्ठानं तवोदरम् ॥१५१ मध्येऽन्तरिक्षे विस्तीर्ण तारागणविभूषितम् । तारपथ इवssभाति श्रीमान्हारस्तवोरसि १५२ दिशा दश भुजास्ते वै केयूराङ्गदभूषिताः । विस्तीर्णपरिणाहश्च नीलाम्बुदचयोपमः १५३ कण्ठस्ते शोभते श्रीमान्हेमसूत्रविभूषितः । दंष्ट्राकरालदुर्धर्षमनौपम्यं सुखं तव ॥१५४ नृत्य-वाद्य के प्रेमी, यज्ञस्वरूप, गायक, संगीत, गीत शील, कटककर, (?) भयङ्कर उम्न रूपधारी, विभीषण, भी म, भग ( देवता ) मन्थनकर्ता, सिद्धसमूह द्वारा प्रशंसित, महाभाग अट्टहासकर्ता, ( सहनाद ) करने वाले , कूदने वाले और प्रमुदित हैं, आपको नमस्कार है ।१४० १४५। आप अद्भुत, शयनशील, धावमान, प्रस्थित , ध्याता, जम्हॉई लेने वाले, पीड़क, पलायनकर्ता, चलमान, क्रीड़ारत, लम्बोदार, नमस्कृत, कम्प, सुण्ड, विकट, उन्मत्तवेष, क्रूर, उग्र, अमर्षण (असहनशील), अप्रमेय, किंकिणीधारी, विकृतनेत्र, विकृतवेशधारी दीप्तिनिर्गुण, फ़ेिय, वाद नगवाली अंगूठी पहने हुये, स्तोकतनु, अनुपम गुण वालेगण, गुह्य, गम्य, गमन हैं, आपको नमस्कार है ।१४६१५० हे भगवन् ! यह लोकधात्री पृथ्वी, आपका सज्जन-सेवित पदयुगल है और नारायण से विभूषित जो विस्तीर्णं अन्तरिक्षमध्य है, वही आपका उदर है, जो सम्पूर्ण सिद्ध-योगियों का अघि ष्ठान है । आपकी छाती का हार तारापथ ( आकाश गग ) की तरह शोभायमान है । दस दिशायें आपकी भुजाये हैं, जो केयूर और अङ्गद से विभूषित हैं । विशाल और विस्तीर्णे नील मेघों का समूह आपका कण्ठ , जो विद्युल्लता हेमसूत्र से हैरूपी विभूषित है ।१५११५३३ । आपका अनुपम मुख दन्तपंक्ति से कराल

  • धनुश्चिढ्तर्गतग्रन्थः खः घः पुस्तकयोर्नास्ति ।