पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१८०

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चतुविंशोऽध्यायः १६१ अथ चतुर्विंशोऽध्यायः द्यावत६६ १ १२ ३ वायुरुवाच चत्वारि भारते वर्षे युगानि चुनयो विदुः । कृतं त्रेता द्वापरं च तिष्यं चेति चतुर्युगम् एतत्सहस्रपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणः स्मृतम् । यामाद्यास्तु गणाः सप्त रोमवन्तश्चतुर्दश सशरीरा श्रयन्ते स्म जनलोकं सहानुगाः। एवं देवेष्वतीतेषु महर्लोकाज्जनं तपः मन्वन्तरेष्वतीतेषु देवाः सर्वे महौजसः । ततस्तेषु गतेपूर्व सायुज्यं कल्पवासिनाम् समेत्य देवैस्ते देवाः प्राप्ते संकालने तदा। सहर्लोकं परित्यज्य गणास्ते वै चतुर्दश भूतादिष्ववशिष्टेषु स्थावरान्तेषु वै तदा । शून्येषु तेषु लोकेषु महान्तेषु भवादिषु । देवेष्वथ गतेपूर्व कल्पवासिषु वै जनम् ततसंहृत्य ततो ब्रह्मा देवीषगणदानवान् । संस्थापयति वै सर्वान्दाहवृष्ट्वा युगक्षये । ॥४ I५ । ६ ७ अध्याय २४ शवस्तव वायु बोले-"मुनियों ने कहा है कि भारतवर्ष में छूत, त्रेता, द्वापर और कलि नामक चार युग होते है । इन हजार युगों का ब्रह्मा का एक दिन होता है । इस दिनावसान में यामादि सप्तगण’ और रोमवाले चौदह गण अनुचरों के साथ जनलोक में सशरीर आश्रय ग्रहण करते है ।१-२३। इस प्रकार फिर चौयुगी के नाश होने पर वे देवता पहले जन ओर तपो लोक को प्रस्थान करते है । मन्वन्तरों के बीत जाने पर, बलशाली वगामी होते है और वे ऊपर गये हुये कसंपवसियों का समीप्य ग्रहण करते देवगण भी ऊर्ड है ।३-४ । फिर जब प्रलय उपस्थित होता है, तब वे दौदह देवगण अन्य देत्रों के साथ महलक का त्याग करके जनलोक का आश्रय ग्रहण करते है । उस समय स्थवरान्त अवशिष्ट भूतादि नष्ट हो जाते है, महान् भुवादि लोक शून्य हो जाते है.और कल्पवासियों के साथ देवगण ऊपर चले जाते है |५-६। दाह और वृष्टि से युगक्षय ब्रह्म संहार करके ऋपियो से संस्थापित जव हो जाता है, तब सव का देवदानव को फिर फा०-२१