पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१२७

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१०८ तत्र निर्भत्सनं चैव तथा शोणितभोजनम् । एतास्तु यातना घोराः कुम्भीपाकसुदुःसहः २८ यथा ह्यापस्तु विचिछन्नः स्वरूपमुपयान्ति वै । तस्माचिछन्नाश्च भिन्नश्व यातनास्थानमागतः २e एवं जीवस्तु तैः पापैस्तप्यमानः स्वयंकृतैः। प्राप्नुयारकर्मभिः शेषं दुःखं वा यदि चेतरम्(त्) ॥३० एकेनैव तु गन्तव्यं सर्वमृत्युनिवेशनम् । एकेनैव च भोक्तव्यं तस्मात्सुकृतमाचरेत् ३१ न हनं प्रस्थितं कश्विच्छन्तमनुगच्छति । वदनेन कृतं कर्म तदेनमनुगच्छति ३२ ते नित्यं यमविषये विभिन्नदेहः क्रोशन्तः सततमनिष्टसंप्रयोगैः । शुष्यन्ते परिगतवेदनाशरीरा बद्रीभिः सुभृशमधर्मयातनाभिः ३३ कर्मणा मनसा वाचा यदभीक्ष्णं निषेव्यते । तत्प्रसह्य हरेत्पापं तस्मात्सुकृतमाचरेत् ३४ यादृग्जातानि पापानि पूर्वं कर्माणि देहिनः । संसारं तामसं तादृक्षविघं प्रतिपद्यते ।।३५ मानुष्यं पशुभावं च पशुभावान्मृगो भवेत् । मृगत्वात्पक्षिभावं तु तस्माच्चैव सरीसृपः ३६ सरीसृपत्वाद्गच्छेद्धि स्थावरत्वं न संशयः । स्थावरत्वं पुनः प्राप्तो यावदुन्मिषते नरः ३७ कुलालचक्रवद्भ्रान्तस्तत्रैव परिकीतितः । इत्येवं हि मनुष्यादिः संसारे स्थावरान्तिके ३८ विज्ञेयस्तामसो नाम तत्रैव परिवर्तते । सात्त्विकश्चापि संसारो ब्रह्मादिः परिकीर्तितः ३६ और कुंभीपाक की यातना तो उसके लिये अत्यन्त कठिन और दुस्सह हो जाती है ।२७२८जिस प्रकार जल छिन्नभिन्न होकर भी अपना रूप प्राप्त कर लेत है, उसी प्रकार छिन्नभिन्न किये जाने पर भी जीवगण यातना स्थान में पीड़ा का अनुभव करते है । अपने कृत पापों द्वारा दुखित होकर जीव कर्म के शेप हो जाने पर दुःख अथवा सुख प्राप्त करते हैं (२६-३०। मृत्युपुर मे अकेले ही जाना होता है और कर्मफल का भोग भी अकेले ही करना पड़ता है, इसलिये सुकृत कार्यों को ही करना चाहिये । १। यहाँ से प्रस्थान करने पर इस जीव का कोई साथ नहीं देता। केवल अपने द्वारा किया कर्म ही साथ जाता है ।३२। यममन्दिर में पापियो की देह छिन्नभिन्न हो जाती है । सर्वदा घोरं यातना मिलती रहती है, जिससे वे "हाय बाप" करते रहते है । अधर्म के परिणाम-स्वरूप बड़ी भारी यातना की वेदना सहते सहते शरीर सूख जाता है ३३ मन, वचन या कर्म से जो कुछ भी पापाचार किया गया है, वह पाप बलात् यातना स्थान में ले जाता है, इसलिये सत्कर्म ही करना चाहिये ।३४देहधरी पहले जिस प्रकार का पापकर्म करता है, उसी प्रकार वह षविध तामस संसार में प्राप्त होता है ।३५। मनुष्य, पशु, मृग, पक्षी, सरीसृप और स्थावर आदि क्रमशः निकृष्टयोनिवों में जन्म प्राप्त कर पापी जीव फिर मनुष्यत्व प्राप्त करता है.। कुम्हार के चक्के की तरह पापी जीव सदा घूमता रहता है। संसार में मनुष्य से लेकर स्थावर पर्यन्त की यही दशा है । ये तामस हैं औरं पापी जीव इन्हो में घूमता रहता है । ब्रह्मा से लेकर पिशाचपर्यन्त सात्विक सृष्टि है। इनका स्थान