पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१२३

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१०४ ॥२१ अगन्धरसरूपस्तु स्पर्शशब्दविजतः। अवण ह्यस्वरश्चैव तथा वर्णस्य हचित् भुङ्क्तेऽथ विषयांश्चैव विषयैर्न च युज्यते । ज्ञात्वा तु परमं सूक्ष्मं सूक्ष्मत्वाच्चापवर्गकः ॥ २२ व्यापकस्त्वपवर्गाच्च व्यापित्वात्पुरुषः स्मृतः । पुरुषः सूक्ष्मभावात्तु ऐश्वर्यं परतः स्थितः ॥२३ गुणान्तरं तु ऐश्वर्यं सर्वतः सूक्ष्म उच्यते । ऐश्वर्यमप्रतीघाति प्राप्य योगमनुत्तमम् । अपवर्गे ततो गच्छेत्सुसूक्ष्मं परमं पदम् २४ इति महापुराणे वायुप्रोक्ते योगैश्वर्यनिरूपणं नाम त्रयोदशोऽध्यायः ।।१३।। इच्छा के अनुसार कार्य-सम्पादन करते हैं ।१६-२० गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द, वर्ण, स्वर आदि उन्हें कुछ नहीं है ।२१। वे विषय भोग करते हैं; किन्तु विषय में लिप्त नहीं होते। परम सूक्ष्म का ज्ञान होने से अपवर्ग होता है; क्योंकि अपवनं सूक्ष्म है ।१२। व्यापक-व्यापित्व और अपवर्ग के कारण ही वे पुरुष कहे जाते हैं। पुरुष सूक्ष्म भाव के ऐश्वर्य के चारों ओर अवस्थित है ।२३। ऐश्वर्य-गत अन्य गुण सबकी अपेक्षा सूक्ष्म हैं । मानव अविनाशी उत्तम योग के प्रभाव से परम सूक्ष्म अपवर्गे नाम से परम पद प्राप्त करते हैं ।२४॥ श्रीवायुमहापुराण का यागरवयं निरूपण नामक तेरहवाँ अयाय समाप्त ।१३।।