पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११४४

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एकादशाधिकशततमोऽध्यायः नमस्तेऽश्वत्थराजाय ब्रह्मविष्णुशिवात्मने । बोधिद्रुमाय कर्ताणां पितॄणां तारणाय च येऽस्मत्कुले मातृवंशे बान्धवा दुर्गात गताः । त्वदर्शनात्स्पर्शनाच्च स्वर्गत यान्तु शाश्वतीन् ऋणत्रयं मया दत्तं गयामागत्य वृक्षराट् | त्वत्प्रसादान्महापापाद्विमुक्तोऽहं भवार्णवात् तृतोये ब्रह्मसरसि स्नात्वा श्राद्धं सपिण्डकम् | कृत्वा सर्वप्रमाणेन मन्त्रेण विधिवत्सुत + स्नानं करोमि तीर्थेऽस्मिन्नणत्रयविमुक्तये तत्कूपयूपयोर्मध्ये ब्रह्मलोकं नयेत्पितॄन् यागं कृत्वोत्थितो यूपो ब्रह्मणा यूप इत्यसौ । कृत्वा ब्रह्मसरःश्राद्धं सर्वास्तारयते पित्न यूपं प्रदक्षिणीकृत्य वाजपेयफलं लभेत् । ब्रह्माणं च नमस्कृत्य ब्रह्मलोकं नयेत्पितॄन् नमोऽस्तु ब्रह्मणेऽजाय जगज्जन्मादिरूपिणे । भक्तानां च पितॄणां च तारकाय नमो नमः गोप्रचारसमोपस्था आत्रा ब्रह्मप्रकल्पिताः । तेषां सेचनमात्रेण पितरो मोक्षगामिन: ( णा) ११२३ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ ॥३३ ॥३४ ॥३५ ॥३६ यूप के मध्यभाग में श्राद्धादि सम्पन्न करनेवाला मनुष्य अपने समस्त पितरों का उद्धार करता है । वहाँ पर धर्म धर्मेश्वर को नमस्कार कर महाबोधि वृक्ष को नमस्कार करना चाहिये | २४-२७१ ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवस्वरूप ! अस्वस्थ राज ! बोधि वृक्ष ! आपको हमारा नमस्कार है। यहाँ पर श्राद्धादि सम्पन्न करनेवाले एवं उसके पितरों के तारने के लिये मै यह क्रिया कर रहा हूँ | हमारे पिता के तथा माता के वंश में उत्पन्न होकर जो बान्धवगण दुर्गति भोग रहे हैं, वे तुम्हारे दर्शन एवं स्पर्श के करने से सर्वदा के लिए स्वर्गलोक की प्राप्ति करें | वृक्षराज ! इस गयापुरी में आकर मैं अपने तीनों ऋणों से मुक्त हो गया हूँ, तुम्हारी कृपा से मैं महान् पापों से विमुक्त हो गया हूँ |२८-३०१ तीसरे दिन ब्रह्मसरोवर में स्नान कर सभी प्रकार की विधियों से संयुक्त, मन्त्रोच्चारण करके सपिण्ड श्राद्ध करे। 'तीनों ऋणों को मुक्ति प्राप्त करने की कामना से मैं इस तीर्थ में स्नान कर रहा हूँ, इस प्रकार उस कूप और यूप के मध्य मे श्राद्ध सम्पन्न करने वाला व्यक्ति अपने पितरों को ब्रह्मलोक पहुँचाता है। ब्रह्मा ने यज्ञ समाप्ति के बाद उक्त यूप ( यज्ञ समस्त ) को प्रतिष्ठा की थी, तभी से उसको प्रसिद्धि है, ब्रह्म सरोवर में श्राद्ध करके मनुष्य अपने सभी पितरो को तारता है |३१-३३। उक्त यूप की प्रदक्षिणा करके वाजपेय यज्ञ की फल प्राप्ति होती है। ब्रह्मा को नमस्कार करने वाला अपने पितरों को ब्रह्मलोक को प्राप्ति कराता है । 'अजन्मा, निखिल चराचर जगत् के आदि कर्ता भगवान् ब्रह्मा को हमारा नमस्कार है, अपने भक्तो एवं पितरों के उद्धारक ब्रह्माजी को बारम्बार हमारा नमस्कार है |३४-३५। गोत्रचार के समीप में ब्रह्मा द्वारा लगाये गये भान के वृक्ष है, उनके सोचने मात्र से पितरगण मोक्ष के अधिकारी हो जाते है । ब्रह्मसरोवर में उत्पन्न होनेवाले आम्र के वृक्ष ब्रह्मदेव मय हैं, स्वयं +नास्त्यर्घमिदं ख. पुस्तके |