पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११२९

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[[११०५] वायुपुराणम् शिलायां देवरूपिण्यां न तिष्ठामस्त्वया विना | स्थास्यामोऽत्र त्वया सार्धं नित्यं व्यक्तादिरूपिणा ॥३३ एवमस्तु श्रिया सार्धं स्थितश्चाऽऽदिगदाधरः । *लोकानां रक्षणार्थाय जगतां मुक्तिहेतवे ॥ सुव्यक्तः पुण्डरीकाक्षो जनार्दन इति श्रुतः वेदैरगम्या या मूर्तिरादिभूता सनातनी । सुव्यक्ता श्वेतकल्पे सा भविष्यति तथा पुनः ॥ वाराहकल्पे ह्यव्यक्ता व्यक्तिमप्यगमत्पुरा ॥३५ ॥३६ संतारणाय लोकानां देवानां रक्षणाय च । गयाशिरसि सुव्यक्तो भविष्यति न संशयः ये द्रक्ष्यन्ति सदा भक्त्या देवमादिगदाधरम् । (+ कुष्ठरोगादिनिर्मुक्ता यास्यन्ति हरिमन्दिरम् ॥३७ ये द्रक्ष्यन्ति सदा भक्त्या देवमादिगदाधरम् ) | ते प्राप्स्यन्ति धनं धान्यमायुरारोग्यमेव च कलत्रपुत्रपौत्रादिगुणकोतिसुखानि च । श्रद्धया ये नमस्यन्ति राज्यं ब्रह्मपुरं तथा ॥ भुक्त्वा व्रजेयुः सततं पुण्यपुञ्जफलं नराः ॥३८ गन्धदानेन गन्धाढ्घः सौभाग्यं पुष्पदानतः । धूपदानेन राज्याप्तिर्दोपाद्दोप्तिर्भविष्यति ॥३४ ॥३६ ॥४० लोग यहाँ पर सर्वदा स्थिर रह सकेंगे ! आदि गदाघर ऐसा हो हो -- कहकर लक्ष्मी के साथ वहाँ विराजमान हुए । समस्त लोकों की रक्षा एवं जगत् के जीवों को मुक्ति प्रदान करने के लिये भगवान् आदि गदाधर पुण्डरीकाक्ष जनार्दन नाम से वहाँ व्यक्त स्वरूप धारणकर स्थित हुए - ऐसा सुना जाता है | ३२-३४ | श्वेत कल्प में वेदों द्वारा अगम्य जो आदि भूत, सनातन, भगवान् को व्यक्त मूर्ति घी, वही भविष्य में वाराह कल्प के आने पर अव्यक्त हो जाती है। प्राचीनकाल में वही व्यक्तता को प्राप्त हुई । लोक का उद्धार एवं देवताओं की रक्षा करने के लिए गया शिर पर वह व्यक्त होगी इसमें सन्देह का स्थान नहीं है | ३५-३६। जो लोग सर्वदा भक्तिपूर्वक भगवान् आदि गदाघर का दर्शन करेंगे, वे कुष्ठ जैसे महान् असाध्य रोगो से मुक्त होकर भगवान् विष्णु के लोक को जायँगे । जो आदि गदाधर भगवान् का भक्ति पूर्वक सर्वदा दर्शन करेंगे वे विपुलधन, धान्य, आयु एवं आरोग्य को प्राप्ति करेंगे |३७-३८० कलत्र, पुत्र, पौत्रादि, गुण, कीर्ति एवं सुख की उन्हें प्राप्ति होगी । जो लोग भगवान् आदि गदाधर को श्रद्धापूर्वक नमस्कार करेंगे, वे राज्य तथा ब्रह्मपुर की प्राप्ति करेंगे । वे मनुष्य अपने निखिल पुण्यकर्मों का विपुल फल भोगकर अन्त में ब्रह्मपुर को प्राप्त होंगे |३१| सुगन्धित द्रव्यों के दान-से विपुल सुगन्धित द्रव्यों को प्राप्ति होगी, पुष्प के दान से सौभाग्य की वृद्धि होगी। धूप-दान से राज्य प्राप्ति होगी, दीप दान से विपुल कान्ति मिलेगी। ध्वजा के दान से पाप का विनाश होगा, जो यात्रा

  • अयं श्लोकः ख. पुस्तके न विद्यते ।

+धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. पुस्तके नास्ति ।