पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११३०

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मवाधिकशततमोऽध्यायः - ११०६ ध्वजदानात्पापहानिर्यात्राकृद्द्ब्रह्मलोकभाक् । श्राद्धपिण्डप्रदो यस्तु विष्णुं नेष्यन्ति वै पितॄन् ॥४१ श्रद्धया ये नमस्यन्ति स्तोत्रेणाऽऽदिगदाधरम् | [ x स्तोष्यन्ति च समभ्यर्च्य पितृघ्नेष्यन्ति माधवम् ॥ शिवोऽपि परया प्रोत्या तुष्टावाऽऽदिगदाधरम् ॥४२ शिव उवाच ॥४५ अव्यक्तरूपो यो देवो सुण्डपृष्ठाद्रिरूपतः । फल्गुतीर्थादिरूपेण नमाम्यादिगदाधरम् ऋव्यक्ताव्यक्तस्वरूपेण पदरूपेण संस्थितः । मुखादिलिङ्गरूपेण नमास्यादिगदाधरम् अव्यक्तरूपो यो देवो जनार्दनस्वरूपतः । सुण्डपृष्ठे स्वयं जातो नमाम्यादिगदाधरस् शिलायां देवरूपिण्यां स्थितं ब्रह्मादिभिः सुरैः । पूजितं सत्कृतं देवैस्तं नमामि गदाधरम् यं च दृष्ट्वा ततः पृष्ट्वा पूजयित्वा प्रणस्य च । श्राद्धादौ ब्रह्मलोकाप्तिर्नमाम्यादिगदाधरम् ॥४७ महदादेच जगतो व्यक्तस्यैकं हि कारणम् | अव्यक्तज्ञानरूपं तं नमाम्यादिगदाधरम् ॥४६ ॥४६ ॥४३ ॥४४ करेगा वह ब्रह्मलोक का अधिकारी होगा । जो श्राद्ध एवं पिंडदान करेगा वह अपने पितरों को विष्णुलोक पहुँचाएगा |४०-४१। जो व्यक्ति ऊपर के स्तोत्र द्वारा स्तुतिकर आदि गदाघर को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करेगा, पूजन करेगा, वह अपने पितरों को मानव के समीप पहुँचायेगा । शिव ने भी परम भक्ति आदि गदाघर की स्तुति की थी |४२३॥ शिव ने कहा - जो अव्यक्त स्वरूपधारण कर मुण्डपृष्ठपर्वत एवं फल्गुतीर्थं प्रभृति अन्यान्य तीर्थों के स्वरूप में विराजमान है, उस परमदेव आदि गदाधर को हम नमस्कार करते हैं । जो व्यक्ताव्यक्त स्वरूप धारणकर पद, मुखादि चिह्नों के रूप में विराजमान है, उस आदि गदाघरदेव को हम नमस्कार करते हैं । जो अव्यक्त स्वरूप धारण करनेवाला देव मुण्डपृष्ठ पर जनार्दन का स्वरूप धारणकर विराजमान है, उस आदि गदाधर देव को हम नमस्कार करते हैं |४३-४५। जो देवस्वरूपिणी शिला पर ब्रह्मा प्रभृति देवगणों द्वारा पूजित एवं सत्कृत होकर अवस्थित है, उस गदाधर देव को हम नमस्कार करते हैं । श्राद्धादि में जिसका दर्शन, स्पर्श पूजन एवं प्रणाम करके प्राणी ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है, उस आदि गदाधर देव को हम नमस्कार करते हैं । महदादि व्यक्त जगत् का जो एकमात्र कारण स्वरूप है, अव्यक्त एवं ज्ञानस्वरूप है, उस आदि गदाधर देव को हम नमस्कार करते हैं |४६-४८। जो शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, प्राण एवं अहङ्कार से × नायं श्लोक: ख. पुस्तके । * इतः प्रभृति जातो नमाम्यादिगदाघरमित्यन्तं ग्रन्थव्यत्यासः 'ख. पुस्तके |