पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११२३

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११०२ धायुपुराणम् कौशिकी ब्रह्मदा ज्येष्ठा सर्वस्याघविमोचिनी | कृष्णवेण्या चर्मवती द्वे नद्यौ मुक्तिदायिके आहूते सरितां श्रेष्ठे लोमहर्षेण साहसात् । तपसस्तु प्रभावेण नर्मदा मुनिपुङ्गव ॥ तासु सर्वासु यः स्नात्वा पिण्डद: स्वर्नयेत्पितॄत् ब्रह्मयोनि प्रविश्याथ निर्गच्छेद्यस्तु मानवः । परं ब्रह्म स यातीह विमुक्तो योनिसंकटात् निक्षरायां पुष्करिण्यां स्नातः श्राद्धादिकं नरः । कुर्यात्कौञ्चपदे दिव्ये नियमाद्वासरत्रयम् ॥ सर्वान्पितन्नयेत्स्वर्गं पञ्च पापिन एव च ॥८४ जनार्दनो भस्मकूटे तस्य हस्ते तु पिण्डदः । आत्मानोऽप्यथवाऽन्येषां सव्येनापि तिलैविना || जीवतां दधिसंमिश्रं सर्वे ते विष्णुलोकगाः यस्तु पिण्डो मया दत्तस्तव हस्ते जनार्दन । x यदुद्दिश्य त्वया देवस्तस्मिन्पिण्डो मृते प्रभो एष पिण्डो मया दत्तस्तव हस्ते जनार्दन । अन्तकाले गते मह्यं त्वया देयो गयाशिरे ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८५ ॥८६ ॥८७ उदीची, कनका, कौशिकी, ब्रह्मदा, जो सभी नदियों में श्रेष्ठ एवं सभी के पापों को वाली है, इन सब नदियों का मावाहन किया था । मुक्तिदायिनी कृष्णा, वेणी और दोनों नदियों को जो सर्व श्रेष्ठ मानी जाती हैं, लोमहर्षण ने अपने तपोवल से आवाहित किया था । मुनिपुङ्गव ! अपने तपस्या के प्रभाव से नर्मंदा का भी आवाहन लोमहर्षण ने किया था, इन सभी नदियों में स्नानकर पिण्डदान करनेवाला मनुष्य अपने पितरों को स्वर्ग पहुँचाता है |७५-८२ | इस गयातीर्थं में अवस्थित ब्रह्मयोनि नामक तीर्थ में प्रवेश कर जो मनुष्य बाहर निकल आता है, वह ब्रह्म को प्राप्त करता है और योनि सङ्कटों से सवंदा के लिये मुक्त हो जाता है । निक्षरा नामक पोखरी में स्नान कर श्राद्धादि सम्पन्न करनेवाला मनुष्य दिव्य कौश्वपद पर नियम पूर्वक तीन दिनों तक निवास करे, ऐसा करनेवाला व्यक्ति पाँच प्रकार के पापों के करने वाले समस्त पितरों को स्वर्ग पहुँचाता है । भस्मकूट पर जनार्दन का निवास स्थल है, उनके हाथ में अपने लिये तथा अन्यान्य लोगों के लिये तिलों के पिण्ड अपसव्य हो दान करना चाहिये, जीवित व्यक्तियों के लिये दघिमिश्रित पिण्डदान करना चाहिये । जो इस तरह करते हैं वे सभी विष्णुलोकगामी होते हैं । पिण्डदान करते समय यह मंत्र उच्चारण करना चाहिये । प्रभो ! जनार्दन ! जो पिण्ड मैं जिस के उद्देश्य से आप के हाथों में समर्पित कर रहा हूँ, उसके मर जाने पर वह पिण्ड आप उसके लिए पहुँचा देंगे । जनार्दन यह पिण्ड मैं अपने लिये आपके हाथों में समर्पित कर रहा हूँ, मेरा अन्तकाल जब हो जाय तब उसे आप गयाशिर में हमें प्रदान करेंगे। जनार्दन ! गाप पितरों को मुक्ति प्रदान करनेवाले हैं । आप विनष्ट करने चमंवतो - इन