पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०२८

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एकेशततमोऽध्यायः १००७ ॥१४२ यस्मान्न च्यवते भूयो ब्रह्माणं स उपासते | एककोटिर्योजनानां पञ्चाशनियुतानि तु ऊर्ध्वभागस्ततोऽण्डस्य ब्रह्मलोकात्परः स्मृतः । चतुर (तत्र) श्चैव कोटचस्तु नियुता पञ्चषष्टि च || १४३ एषोऽर्धाशिमचारोऽस्य गत्यन्तचापरः स्मृतः । ध्रुवाग्रमेतद्वयाख्यातं योजनाग्राद्यथाश्रुतम् + अधोगतीनां वक्ष्यामि भूतानां स्थानकल्पनाम् । गच्छन्ति घोरकर्माणः प्राणिनो यत्र कर्मभिः नरको रौरदो रोधः सूकरस्ताल एव च । ( x तप्तकुम्भो महाज्वालः शबलोऽथ विमोचनः कृमी च कृमिभक्षश्च लालाभक्षो विशंसनः । अधः शिराः पूयवहो रुधिरान्धस्तथैव च ) तथा वैतरणं कृष्णमसिपत्रवनं तथा । अग्निज्वालो महाघोरः संदशोऽयश्व भोजनः - तमश्च कृष्णसूत्रश्च लोहश्चाप्यसिजस्तथा । अप्रति वीच्यश्वनरका ह्येवमादयः तामसा नरकाः सर्वे यमस्य विषये स्थिताः । येषु दुष्कृतकर्माणः पतन्तीह पृथक्पृथक् भूमेरधस्तात्ते सर्वे रौरवाद्याः प्रकीर्तिताः । रौरवे कूटसाक्षी तु मिथ्या यश्चाभिशंसति ॥ क्रूरग्रहे पक्षवादी ह्यसत्यः पतते नरः ॥१४४ ॥१४५ ॥१४६ ॥१४७ ॥१४८ ॥१४६ ॥१५० ॥१५१ वहाँ वे सर्वथा ब्रह्मा की उपासना में निरत रहते हैं । इस ब्रह्मलोक से अण्ड ( ब्रह्माण्ड ) के ऊपर भाग का परिमाण एक कोटि पचास नियुत योजन एवं निम्न भाग का परिमाण चार कोटि पैंसठ नियुत योजन कहा जाता है । इस मंश के अधो भाग में ध्रुव की स्थिति और उसी में नक्षत्र ग्रहादिकों का विचरण होता है ऊपरी भागो में किसी की भी गति नहीं सुनी जाती है। मैंने जिस प्रकार सुना था उसी प्रकार योजनों द्वारा उपर्युक्त लोकों को दूरी आदि का वर्णन ध्रुवलोक से ऊपर स्थित आप लोगों के सम्मुख कर चुका अब इसके उपरान्त अधोगति को प्राप्त होनेवाले जीवों के निवास स्थलों का वर्णन कर रहा हूँ, जहाँ पर घोर पाप कर्म करनेवाले पापात्मा अपने कर्मों के अनुसार गमन करते है | १४२-१४५ रोरव, रोध, सूकर, ताल, तप्तकुम्भ, महाज्वाल, शबल, विमोचन, कृमी, कृमिभक्ष, लालाभक्ष, विशंसन, अघशिरा, पूयवह, रुधिराज्म, वैतरण, कृष्ण, असिपत्रवन, अग्निज्वाल, महाधोर, संदेश, श्वभोजन, तम, कृष्णसूत्र, लोह, असिज अप्रतिष्ठ, वीचि, अश्व आदि घोर अंधकार मय नरलोक हैं, जो यमराज के अधीन है । इन्ही नरकों में दुष्कर्मी लोग पृथक् पृथक् पतित होते हैं । ये रौरवादि सभी नरक भूमि के निम्न भाग में अवस्थित कहे जाते हैं । जो कूट साक्षी है अर्थात् झूठी गवाही देता है, सर्वथा मिथ्या बोलने में निरत रहता है, एक पक्ष का किसी कारण वश समर्थन करता है वह असत्यभाषी मनुष्य घोर रौरव नरक में गिरता है ।१४६-१५१९ गोहत्या करनेवाला, गर्भ की हत्या करनेवाला, किसी ग्रामादि में आग + अत्राध्यायसमप्तिः ख पुस्तके | X धनुरिचह्नान्तर्गत ग्रन्थो ग. पुस्तके मास्ति ।