पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०२९

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१०७८ वायुपुराणम् ॥१५३ ॥१५४ ॥१५५ रोधे गोघ्नो भ्रूणहा च अग्निदाता पुरस्य च । सुकरे ब्रह्महा मज्जेत्सुरापः स्वर्णतस्करः ॥१५२ ताले पतेत्क्षत्रियहा हत्वा वैश्यं च दुर्गतिम् । ब्रह्महत्यां च यः कुर्याद्यश्च स्याद्गुरुतल्पगः तप्तकुम्भी स्वसागामी तथा राजभटश्च यः । तप्तलोहे चाश्ववणिक्तथा बन्धनरक्षिता साध्वीविक्रयकर्ता च वस्तु भक्तं परित्यजेत् । महाज्वाले दुहितरं स्नुषां गच्छति यस्तु वै वेदो विक्रीयते येन वेदं दूषयते च यः । गुरूंश्चैवावमन्यन्ते वाऽऽक्लोशैस्ताडयन्ति च अगम्यगामी च नरो नरकं शबलं व्रजेत् । विमोहे पतिते चौरो मर्यादा यो भिनत्ति वै दुरिष्तं कुरुते यस्तु कीटलोहं प्रपद्यते । (* देवब्राह्मणविद्वेष्टा गुरूणां चाप्यपूजकः || रत्नं दूषयते वस्तु कृमिभक्ष्यं प्रपद्यते ॥१५६ ॥१५७ पर्यश्नाति य एकोऽज्यो ब्राह्मणों सुहृदः सताम् ) | लालाभक्षे स पतति दुर्गन्धे नरके गतः ॥१५८ ॥१५६ लगाने वाला पापी मनुष्य रोध नामक नरक में गिरता है । जो ब्राह्मण की हत्या करता है, सुरापाम करता है सुवर्णं को चोरी करता है, वह पापात्मा सूकर नामक नरक में पतित होता है । जो किसी क्षत्रिय को हत्या करता है, अथवा किसी ब्राह्मण या वैश्य की हत्या करता है, गुरु की शय्या ( स्त्री के साथ ) पर गमन करता है, वह पापी मनुष्य घोर ताल नामक नरक में निपतित होता है। जो पापात्मा बहिन के साथ व्यभिचार करता है, राजा की हत्या करता है वह तप्तकुम्भ नामक नरक लोक में निवास करता है। दूसरे के अश्व को चुराकर विक्रय करनेवाला तथा अन्याय पूर्वक किसी को वाँधने ( फंसाने ) वाला पापी पुरुष तप्तलोह मामक नरक में निवास करता है। जो अपनी पतिव्रता स्त्री को वेचता है, तथा अपने अनुगामी भक्त को छोड़ देता है, अपनी पुत्री अथवा पुत्रवधू के साथ समागम करता है, वह पापात्मा मनुष्य महाज्वाल नामक नरक में पतित होता है ।१५२-१५५१ जो वेदों का विक्रय करता है, अथवा वेद की निन्दा करता है, अपने गुरुजनों का अपमान करता है, उन्हें गाली देता है या मारता पटता है, अथवा अगम्य स्थलो में ( पुत्री; पुत्रवधू, भगिनी, गुरुपत्नी आदि के साथ ) गमन करता है, वह पापात्मा शबल नामक घोर नरक में गिरता है। जो परद्रव्यापहारी पापात्मा किसी की मर्यादा ( प्राचीर, चहारदिवारी आदि ) में भेदन करता है, वह विमोह नामक नरक में पतित होता है। जो किसी का अनिष्ट साधन करता है वह कोट लोह नामक नरक में निवास करता है । देवता और ब्राह्मण के साथ जो पापात्मा विद्वेष करता है, गुरुजनों की पूजा नहीं करता, तथा रत्न को दूषित करता है, वह कृमिभक्ष्य नामक घोर नरक में, पहुँचता है ।१५६-१५८। जो पापात्मा किसी ब्राह्मणी, मित्रादि एवं कन्या के सामने उपस्थित रहने पर भो

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. पुस्तके नास्ति ।