पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०२३

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१००२ वायुपुराणम् सूत उवाच शृणुध्वं मे परार्धं च परिसंख्यां परस्य च । एकं दश शतं चैव सहस्रं चैव संख्यया विज्ञेयमासहस्रं तु सहस्राणि दशायुतम् । एकं शतसहस्रं तु नियुतं प्रोच्यते बुधैः तथा शतसहलाणामदं कोटिरुच्यते । अर्बुदं दशकोट्यस्तु अन्जं कोटिशतं विदुः सहस्रमपि कोटीनां खर्वमाहुर्मनीषिणः । दशकोटिसहस्राणि निखर्वमिति तं विदुः शतं कोटिसहस्राणां शङ्कुरित्यभिधीयते । सहस्रं तु सहस्राणां फोटोनां दशधा पुनः ॥ गुणितानि समुद्रं वै प्राहुः संख्याविदो जनाः कोटोनां सहस्रमयुतमित्ययं मध्य उच्यते । फोटिसहरूनियुता स चान्त इति संज्ञितः कोटिकोटि सहस्राणि परार्ध इति फोर्त्यते । परार्धं द्विगुणं चापि परमाहुर्मनीषिणः शतमाहुः परिदृढं सहस्रं परिपद्मकम् | विज्ञेयमयुतं तस्मान्नियुतं प्रयुतं ततः अर्बुदं न्यर्बुदं चैव स्वर्बुदं च ततः स्मृतम् | खर्वं चैव निखर्वं च शङ्कं पद्मं तथैव च NIER ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ HEE ॥१०० ॥१०१ सूत वोले :- ऋषिवृन्द ! मैं पराई और पर की परिभाषा बतला रहा हूँ, सुनिये । एक, दस, सो, सहस्र ये संख्यायें आप लोगो को विदित ही हैं। आगे चलकर दस सहस्र का एक अयुत जानना चाहिये । सो सहस्र का बुद्धिमान लोग एक नियुत बतलाते है । दस सौ सहस्र अर्थात् दस नियुत ? को एक फोटि होती है, दस कोटि का एक अर्बुद ( अरव ) होता है, सो कोटि का एक अब्ज ( पद्म ) वतलाते है । मनीपीगण एक सहस्र कोटि का खर्व कहते हैं, दस सहस्र कोटि का एक निखर्व होता है। सौ सहस्र कोटि का एक शङ्कु कहा जाता है, सहस्र- सहस्र कोटि को पुनः दस बार गुणित करने पर जो गुणनफल प्राप्त होता है उसे संख्या तत्त्ववेत्ता लोग समुद्र नाम से पुकारते है |६३-६७ । सहस्र अयुत कोटि का एक मध्य, सहस्र नियुत कोटि का एक अन्त, और सहस्र कोटि कोटि का एक परार्द्ध होता है । मनीपोगण दो परार्द्ध की एक संख्या मानते है । सो संख्या को परिदृढ़ और सहस्र को परिषद्मक कहते हैं। उसके उपरान्त अयुत, नियुत, प्रयुत, अर्बुद, भ्यर्बुद, स्वर्बुद, ( रवर्बुद ) खवं, निखर्व, शक, पद्म, समुद्र, मध्यम परार्द्ध और पर आदि कुल अठारह संख्यायें है, जो गणना के कार्यों में प्रयुक्त होती है । ये संख्यायें परस्पर गुणित होने पर सो सो की संख्या में परिणत हो जाती है। महाषियों ने वनलाया है, ब्रह्मा के एक कल्प काल की परिमाण संख्या सृष्टि आरम्भ होने के काल से लेकर एक परार्द्ध होती है । इसके उपरान्त १. यहाँ आनन्दाश्रम की प्रति में 'अर्वुदं' पाठ गशुद्ध है, शुद्ध पाठ इस प्रकार होगा, 'तथा शतसहस्राणां दशकं कोटि रुच्यते ।' अनुवादक