पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०१६

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एकशततमोऽध्यायः गन्धवर्षाप्सरसो यक्षा गुह्यकास्तु सराक्षसाः । सर्वभूतपिशाचाश्च नागाश्च सह मानुषैः ॥ स्वर्लोकवासिनः सर्वे देवा भुवि निवासिनः मरुतो मातरिश्वानो रुद्रा देवास्तथाश्विनौ | अनिकेतान्तरिक्षास्ते भुवर्लोक्या दिवौकसः आदित्या ऋभवो विश्वे साध्याश्च पितरस्तथा । ऋषयोऽङ्गिरसश्चैव भुवर्लोकं समाश्रिताः एते वैमानिका देवास्ताराग्रहनिवासिनः । इत्येते क्रमशः प्रोक्ता ब्रह्मव्याहारसंभवाः मूर्लोकप्रथमा लोका महदन्ताश्च ते स्मृताः । आरभ्यन्ते तु तन्मात्रैः शुद्धास्तेषां परस्परम् शुक्राद्याश्चाक्षुषान्ताश्च ये व्यतीता भुवं श्रिताः । महर्लोकश्चतुर्थस्तु तस्मस्ते कल्पवासिनः ॥

  • इत्येते क्रमशः प्रोक्ता ब्रह्मव्याहारसंभवाः

भूर्लोकप्रथमा लोका महदत्ताश्च ये स्मृताः । तान्सर्वान्सप्त सूर्यास्ते अचिभिनिर्दहन्ति वं मरीचिः कश्यपो दक्षस्तथा स्वायंभुवोऽङ्गिराः | भृगुः पुलस्त्यः पुलहः तुरित्येवमादयः ६६५ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ ||३३ ॥३४ ॥३५ है, इसी कारण ब्रह्मलोक सत्यलोक के नाम से प्रसिद्ध है, यह परम प्रकाशमय लोक उक्त सातों लोकों में अन्तिम अर्थात् सातवां है। समस्त देवगण, गन्धर्वो, अप्सराओं, यक्षों, और गुह्यकों के साथ स्वर्लोक में निवास करते हैं । सर्प, भूत, पिशाच, नाग एवं मनुष्यगण पृथ्वी लोक के निवासी हैं | २६-२८ | मरुद्गण, वायुगण, रुद्रगण कुछ देवगण, दोनों अश्विनीकुमार ये यद्यपि किसी निकेतन में निवास करने वाले नहीं हैं; पर इनका प्रमुख निवास स्थल भुवर्लोक है । स्वर्ग लोक में निवास करने वाले आदित्य गण, ऋभुगण, विश्वेदेव गण, साध्यमण पितर गण, एवं अंगिरा गोत्रोय ऋषिगण, भी, भुवर्लोक में आश्रय प्राप्त करते हैं । ये सभी देवादिगण विमानों में चढ़ कर तराओं एवं ग्रहपिण्डों का आश्रय ग्रहण कर भुवर्लोक में निवास करते हैं । ब्रह्मा के भूभुवस्स्वरादि शब्दों के उच्चारणों द्वारा निर्मित लोकों की चर्चा आप लोगों से कर चुका । भूर्लोकादि महर्लो- कान्त ( भूलोक से लेकर महर्लोक तक ) जिन लोकों को चर्चा ऊपर की गई है, वे सब तन्मात्राओं से आरम्भ किये गये है ये परस्पर शुद्ध है, एक दूसरे से मिले हुये नहीं हैं । शुक्र से लेकर चाक्षुप मनु पर्यन्त, जो पृथ्वी लोक • आश्रम प्राप्त करनेवाले व्यतीत हो चुके हैं, वे भी कल्पान्त के अवसर पर इस चतुर्थ महर्लोक में जाकर अवस्थान करते हैं । ब्रह्मा की महा व्याहृतियो से उत्पन्न समस्त लोकों का विवरण क्रम पूर्वक कह चुका /२९-३३। प्रलय में भू से लेकर महर्लोक तक जब सभी लोक सात सूर्य की रश्मियों द्वारा दग्ध हो जाते हैं, तब मरीचि, कश्यप, दक्ष, स्वायम्भुव, अङ्गिरा, भृगु, पुलस्त्य, पुलह ऋतु आदि प्रजापति गण एक साथ जन लोक में निवास करते है । ऋभु एवं सनत्कुमारादि निःसत्त्व, निर्मम ऊर्ध्वरेता संसार

  • एतदर्धं क. पुस्तके नास्ति ।