पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०१५

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६६४ वायुपुराणम् सत्यस्तु सप्तमो लोको निरालोकस्ततः परम् । भूरिति व्याहृते पूर्व भूर्लोकश्च ततोऽभवत् + [द्वितीयो भुव इत्युक्त अन्तरिक्षं ततोऽभवत् । तृतीयं स्वरितीत्युक्ते दिवं प्रादुर्बभूव ह व्याहारैस्त्रिभिरेत॑स्तु ब्रह्मा लोकमकल्पयत् ] ततो भूः पार्थिवो लोकोह्यन्तरिक्षं भुवः स्मृतम् स्वर्लोको वै दिवं ह्येतत्पुराणे निश्चयं गतम् । भूतस्याधिपतिश्चाग्नितस्तो भूतपतिः स्मृतः वायुर्भुवस्याधिपतिस्तेन वायुर्भुवस्पतिः । भव्यस्य सूर्योऽधिपतिस्तेन सूर्यो दिवस्पतिः महेतिव्याहृतेनैवं महर्लोकस्ततोऽभवत् । विनिवृत्ताधिकाराणां देवानां तत्र वै क्षयः जनस्तु पञ्चमो लोकस्तस्माज्जायन्ति वै जनाः | तासां स्वायंभुवाद्यानां प्रजानां जननाज्जनः ॥२४ यास्ताः स्वायंभुवाद्या हि पुरस्तत्परिकीर्तिताः । कल्पदग्धे तदा लोके प्रतिष्ठति तदा तपः ऋभुः सनत्कुमाराद्या यत्र सन्त्यूर्ध्वरेतसः | तपसा भावितात्मानस्तत्र सन्तीति वा तपः सत्येति ब्रह्मणः शब्दः सत्तामात्रस्तु स स्मृतः । ब्रह्मलोकस्ततः सत्यं सप्तमः स तु भास्करः ॥२३ ॥२५ ॥२६ ।।२७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ - उच्चारण कर भूर्लोक की, भुवः - ऐसा उच्चारण कर भुवर्लोक की, स्वः ऐसा उच्चारण कर स्वर् लोक की सृष्टि को । भूर्भुव: स्व: - इन्ही तीनों महाव्याहृतियो से उक्त तीनों को उत्पत्ति हुई है । भू की पार्थिव लोक नाम से, भुव को अन्तरिक्ष लोक नाम से, और स्वर् को स्वर्ग लोक नाम से प्रसिद्ध है - ऐसा पुराणों मे निश्चित किया गया है । अग्नि भूतो का अर्थात् पृथ्वीस्प समस्त पदार्थों का अधिपति है, इसी कारण उसे भूतपति के नाम से लोग जानते हैं ।१६-२१॥ अन्तरिक्ष का अधिपति वायु है, इसी कारण से वायु भुवस्पति के नाम से प्रसिद्ध हैं | भव्य अर्थात् स्वर् लोक का अधिपति सूर्य है, इसी कारण वह दिवस्पति नाम से विख्यात है। ब्रह्मा के 'महा' (महान् ) - ऐसा उच्चारण करने पर महर्लोक को सृष्टि हुई थी, देवगण अपने अधिकार काल से विनिवृत्त होकर महर्लोक में जाकर अवस्थान करते हैं । जन लोक उक्त लोंको में पाँचवा है, इसी लोक से स्वायम्भुव मनु आदि की प्रजाओं का जनन ( उत्पत्ति ) होता है, अतः उसकी जनलोक नाम से प्रसिद्धि है । पूर्व प्रसंग में स्वायम्भुव मनु आदि को जिन प्रजाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन किया जा चुका है वे सब कल्प के अवसान काल में, जबकि समस्त लोक दग्ध हो जाते हैं, तपोलोक में आश्रय प्राप्त करते हैं, क्योंकि यह उस समय भो विद्यमान रहता है | २२ - २५॥ ऋभू एवं सनत्कुमारादि देवगण जो परम ब्रह्मचारी एवं ऊर्ध्वरेता हो गये हैं, कठोर तपस्या द्वारा आत्मा को जिन्होने वश में कर लिया है, वे जिस लोक में अवस्थित रहते हैं उसको तपोलोक कहते हैं – यह भी तपोलोक का एक लक्षण है, | सत्य — यह ब्रह्मा का एक शब्द हैं, इसका प्रयोग सत्ता ( अस्तित्व ) मात्र में होता + धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थोङ पुस्तके | = अथ परस्मैपदमार्षम् ।