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ऽध्यायः ८.] माध्यसहिता | (१२७) भापार्य-इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको चारसंख्याका स्तोम प्रदान करें, इस यज्ञके फक्से देवतालोक मुझको आठ प्रदान करे, इस यज्ञके फलसे देवालोग मुझको बारह प्रदान करे, इस यसके फलसे देवतालोग मुझको सोलह प्रदान करें, इस यज्ञके फल देवतालोग सुझको बीस प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको चौबीस प्रदान करें, इस यज्ञके फळसे देवतालोग मुझको सहाईस प्रदान करें, इस यज्ञ फलसे देवतालोग मुझको बत्तीस प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको छत्तीस प्रदान करे, इस यज्ञके फलसे देव- तालोग मुझको चालीस प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको चौचालीस प्रदान क्र, इस यज्ञके फलसे देवताकोग मुझको अडतालोस प्रदान करे ॥ २५ ॥

मन्त्रः । व्यवश्वमेव्युवी चमेदित्य॒वाट्च॑ मेदित्यो- हीच॑मे॒पञ्चा॒विश्व॑मे॒पञ्चावचमेत्रिवत्सच सेत्रिव॒त्साच॑ मे॒तुर्य॒वाट्च॑मे तुष्य हीच से य॒ज्ञेन॑कल्प्पन्ताम् ॥ २६ ॥ ॐ व्यविश्चेत्यस्य देवा ऋपयः । ब्राह्मी वृहती छन्दः | अग्निदेवता । वि०पू० ॥ २६ ॥ भाग्यम् - कण्डिकाइयं क्योहामे विनियुक्तम् । तथा च श्रुतिः - [अथवया छंसि जुहोति व्यविश्व म इति पशवो वै क्यासि पशुाभेग्वेनमेतदन्तेन मीणात्ययो पशुभिरेवेनमेतद- मिति इति । अभिषणमासात्मकः कालः (व्यवि:) त्रयोयो यस्य व्यविः सार्थसंवत्सरो वृषः तादृशी गौः (यो) (दिवा) दिसेवत्सरो वृषो दित्यवाद वादशी गौ: (दित्यौही ) ( पञ्चाविः ) पञ्चायो यस्य सः पञ्चावि | सामिंवत्सरो वृपः (पञ्चावी) तादृशी गौः ( त्रिवत्सः ) त्रयो वत्सा यस्य सः त्रिवत्सः त्रिवर्षी वृषः ( विवरसा ) तादृशो गौ: (तुर्यवाट् ) सार्धत्रिवर्षो वृषः (तुर्यौही ) तादृशो गोः एते (मे) मम ( यज्ञेन कल्पन्ताम् ) सम्पद्यन्ताम् । [ यजु० १८ | २६ ] ॥ २६ ॥ मापार्थ- इस यज्ञ के फलसे देवतालोग मुझको डेटवर्पको आयुका बछडा प्रदान करें, इस व्यजके फल देवतालोग मुझको डेढवर्षकी आयुकी बछिया प्रदान करे, इस यज्ञके फलसे देव- • एक दो तीन चारसे इस बातका भाव भी सूचित होता है कि, एकासे वही एक अद्वि- तीया ब्रह्मशक्ति, दोसे दो सुपर्ण, तीनसे वेदत्रयी वा तीन काल, चारसे चार वेद, पाँचसे पाँच चाण, छःसे छः ऋतु, सातसे सात सागर, आठसे आठ दिशा वा माठ लोकेपाल वा आठ वसु टेन, नौसे अंक भी इसी प्रकार आगे जानना ।