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( १२८ ) रुद्राष्टाध्यायी - [ अमो- तालोग मुझको दो वर्षका वृष प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको दो वर्षकी गो प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको ढाई वर्षका वृष प्रदान करें इस यज्ञके फल से देवतालोग मुझको ढाई वर्षको गौ प्रदान करें, इस यज्ञके फल से देवतालोग मुझको तीन वर्षका वृष प्रदान करे, इस यज्ञके फलते देवतालोग मुझको तीन वर्षकी गाय प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको साढे तीन वर्षका वृष प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको साढे तीन वर्षकी गौ प्रदान करें ॥ २६ ॥ मन्त्रः । पुष्ट॒वाट्च॑मेष्ठौहीच॑मऽउ॒क्षाच॑मेव॒शाच॑म Sऋ][][][][][][][][][][मेवेनश्च॑मे॒यज्ञेन॑ कल्प्पन्ताम् ॥ २७॥ ॐ षष्ठवाडित्यस्य देवा ऋषयः | निच्यृद्धाहयुष्णिक छन्दः । अनिदेवता | वि० पू० ॥ २७ ॥ माध्यम् - (पष्ठवाट् ) पष्टं वर्षचतुष्कं बहतीति पष्ठवाट् चतुर्वेष वृषः (पष्टौड़ी ) तादृशी गौ: ( उक्षा) सेचनक्षमो वृषः (वशा ) वन्ध्या गौः (ऋषभः) अतियुवा वृषः ( वेहत ) गर्भघातिनी गौः (अनडान्) अनः शकटं वहतीत्यनान् शकटवाहनक्षमो वृष: ( धेनु: ) नवप्रसूता गौः एते ( मे ) मम ( यज्ञेन कल्पन्ताम् ) स्वस्वव्यापार- समय भवन्तु | यद्वा एते यज्ञेन मम कल्पन्ताम् । मह्यमुपभोगक्षमा भवन्त्वित्यर्थः । एवं पूर्वत्र | [ यजु० १८ | २७ ] ॥ २७ ॥ भाषार्थ- इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको चार वर्षका वृष प्रदान करे, इस यजके फलसे देवतालोग मुझको चार वर्षको गो प्रदान करें, इस. यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको सेवन समर्थ वृष प्रदान करें, इस यज्ञके फळसे देवतालोग मुझको बन्ध्या गौ प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको अतियुवा वृष प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको गर्भघातिनी गौ प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको शुकट ( छकडा ) वहन करने में समर्थ वृष प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको नवप्रसूता गो प्रदान करें, यह सब यज्ञके संपादनके निमित्त हैं ॥ २७॥ वाजा॑यु॒स्वाहा॑प्प्रस॒वाय॒ स्वाहा॑पु॒जायु स्वाात॑वे॒स्वाहा॒वस॑व॒स्वाहा॑हप्त॑ये॒ २ मन्त्रः ।