पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२५९

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भाषाटीकासमेता | ( २५१ ) F चरराशि लग्नमें हो तो पूर्वोक्त फल विपरीत जानना जो द्विस्वभाव हो. तो पूर्वार्द्ध में चरराशिके और उत्तरार्द्धमें स्थिरके तुल्य फल कहना ॥३२॥ प्रवासीसुख यातिगुरु त्रिवित्तगौ ॥ चतुर्थस्थानगावे शीघ्रमायातिकार्यकृत् ॥ ३३ ॥ बृहस्पति शुक्र तीसरे वा दूसरे हों तो प्रवासी सुखसे आवेगा जो यही चतुर्थमें हों तो कार्य करके शीघ्रही आवेगा ॥ ३३ ॥ इंदु: मगोलग्नात्पथिकंवक्तिमार्गगम् ॥ गधिपश्चराश्यर्द्धात्पर भागेव्यवस्थितः ॥ ३४ ॥ चन्द्र लमसे सतम हो तो प्रवासी मार्ग में है कहना, मार्गस्थान ९ का स्वामी राशिके उत्तरार्द्धमें हो तोभी यही फल कहना ॥ ३४ ॥ कार्कजीवसौम्यानामेकोपिस्याद्यदायगः ॥ तदाशुगमनंब्रूतेष्टुर्नगमनंव्यये ॥ ३५ ॥ शुक्र सर्थ्य बृहस्पति बुधर्मेसे एकभी ग्यारहवां हो तो प्रवासी शीघ्र आवे जो बारहवाँ हो तो गमागम नहीं होंगे ॥ ३५ ॥ लग्नाद्यावतिथस्थानेबलीखेटोव्यवस्थितः ॥ ब्रयात्तावतिथेमासेपथिकस्यनिवर्त्तनम् ॥ ३६॥ ल^ जितने स्थानमें बलाधिक ग्रह हो उतनी संख्याके महीनों में प्रवासी लौटेगा यहां मास स्थानमें दिन वा वर्ष बुद्धिसे देशकाल देखके कहना ॥ ३६ ॥. एवंकालंचरांशस्थेद्विगुणंचस्थिरांशके ॥ द्विस्वभावांश गेखेटेत्रिगुणंचितयेत्सुधीः ॥ ३७ ॥ यह बली ग्रह चरांशकमें हो तो वह समयही ठीक है जो स्थिरांशकमें हो तो द्विगुण द्विस्वभाव में हो तो त्रिगुण समय कहना ॥ ३७ ॥ यातुवि मित्रभवनाधिपतिर्यदा || करोतिवक्रमावृत्तेः कालंतंब्रुवतेपरे ॥ ३८ ॥ - 1