पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२६०

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( २५२ ) ताजिकनीलकण्ठी । गमन रनेवालोंको गमन वा प्र लयसेः सप्तमेश जब वक्र होवे तब हटने का समय हना यह किसीका मत है ॥ ३८ ॥ चतुर्थदश वापियदिसौम्यग्रहोभवेत् || •तदानगमनरस्त स्थैर्ग नंभवेत् ॥ ३९ ॥ ● चतुर्थ वा दशममें शुभग्रह हो तो गमन न होवे हो तो गमनहोता है ॥ ३९ ॥ द्वालगनाथाद्वायत्सं रखेचराः ॥ नवमेद्वादशेवापितत्संख्याः स्युरुपद्रवाः ॥ ४० ॥ लग्न वा लग्नेशसे नवम वा बारहवें स्थान में जितने पाप ग्रह हों उतने उपद्रव गमनमें होवेंगे कहना ॥ ४० ॥ 0 लग्नाद्वालग्ननाथाद्वायावंतःसौम्यखेचराः ॥ मार्गेतत्रोदयावाच्याः स्थानेस्थानेविचक्षणैः ॥ ४१ ॥ लभ लग्नेशसे जितने शुभग्रह नवग्रहों उतने स्थानों में पांथका उदय हर्ष होगा यह द्वानोंने विचारसे कहना ॥ १ ॥ रयुक्तक्षितो 'द: महग्योगवर्जितः ॥ धर्मस्थस्तनुतेव्याधिप्रोषितस्याष्टगो मृतिम् ॥ ४२ ॥ नवम स्थानमें शनि पापग्रहयुक्त दृष्ट हो शुभग्रहकी दृष्टि योग रहित हो तो पथिकको व्याधि और अष्टममें होतो मृत्यु होवें ॥ ४२ ॥ जामित्रस्यशुभोत्थेयातानायातिदुरुधरायोगे ॥ मित्रस्वामिनिषेधात्पापोत्थेशत्रुरुक्चौरात् ॥ ३ ॥ . सप्तममें शुभ ग्रहोंसे दुरुघरा योग हो तो जानेवाला मित्र अथवा स्वामीके मना करनेसे फिर आवे नहीं जो पापोंसे हो तो शत्रु वा रोग और चौरसे मृत्यु वा मृत्युतुल्यप पावे ॥ ४३ ॥ चंद्रार्कयोशि द्गयोर्यमेनसंदृष्टयोः स्यात्पथिशस्त्रभीतिः ॥ रंप्रेसितेज्ञेचसुख तरारे देभयंपापयुगीक्षितध्वनि ॥ ४ ॥ चन्द्रमा सूर्प्य अष्टम हो शनि उन्हें देखे तो मार्गमें शस्त्रभय होवे, अष्टम - स्थानमें शुक्र बुध हों तो सुख मिले, मंगल शनि पयुक्त वा दृष्ट अष्टम हो तो मार्गमें भय होवे ॥ ४४ ॥ x