पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२५८

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ताजिकनीलकण्ठी ।.. पापास्त्रिकोण जामित्रेविलग्नेपृष्ठकोदये ॥ श. भिवक्ष्यमाणेचयातःकष्टंवदेत्सुधीः ॥ २६ ॥ त्रिकोण तथा सप्तम में पापग्रह और लग्न पृष्टोदय हो शत्रुसे देखा भी जावे तो पांथको बुद्धिमानने कष्ट कहना ॥ २६ ॥ मार्गस्थानगतैः सौम्यैर्मार्गतस्यशुभंवदेत् ॥ क्रूरैर्दुःखविलग्नस्थैःपापैःक्के॒शमवाप्नुयात् ॥ २७ ॥ मार्गस्थान में शुभग्रह हों तो पांथको मार्ग सुखकारी और पाप हों तो दुःखकारी होगा, तथा लग्नमें पाप हों तो पांथको क्लेश होगा ॥ २७ ॥ चरलग्नेचरांशेवाचतुर्थेचंद्रमाः स्थितः ॥ ( २५० ) प्रवासी सुखमायातिकृतकार्य्यश्चवेश्मनि ॥ २८ ॥ चरराशि लग्न में तथा चरराशि चरांशकमें चन्द्रमा चौथा हो तो प्रवासी कार्य करके सुखसे अपने घर शीघ्र आवेगा ॥ २८ ॥ कंटकैः सौम्यसंयुक्तैः पापग्रहविवर्जितैः ॥ प्रवासीसुखमायातिनिधनस्थेनिशाकरे ॥ २९ ॥ केंद्रों में शुभ ग्रह हों पाप ग्रह न हों अथवा चन्द्रमा अष्टम हो तो प्रवासी सुखसे घरमें आवेगा ॥ २९ ॥ गमागमौतुनस्यातांयोगेदुरुधराकृते ॥ शुभैःशुभकृतोरोधः पापैस्तस्करतोभयम् ॥ ३० ॥ जो दुरुधरा योग अर्थात् चन्द्रमासे दूसरे बारहवेंभी कोई ग्रह हों तो गमन तथा आगमनभी न होवे, जो यह योग शुभ ग्रहों से हो तो शुभ कार्य में अटकाव पापोंसे चोर आदिसे हानियें होवें ॥ ३० ॥ गमाग तुनस्यातांस्थिर राशौविलग्नगे ॥ नरोगोपशमोनाशोद्रव्याणांनपराभवः ॥ ३१ ॥ स्थिर राशि लग्नमें हो तो गमन रोग, शांति वा वृद्धि और हारजीत द्रव्य नाश वा लाभ कोईभी शुभ एवं अशुभ न होवे ॥ ३१ ॥ . विपरीतं चरेवाच्यंफलंमिश्रंद्विमूर्तिषु ॥ स्थिरवत्प्रथमेर्खडेपराचरराशिवत् ॥ ३२ ॥