पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९८

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(१९०) ताजिकनीलकण्ठी । अन्न मिले सप्तमेश बलवान् हो तो रुचि भोजनमें अच्छी होगी, निर्बलहो तो क्षुधामंद अरुचि आदि होंगी, दशमेश बली हो तो खानेवाला प्रसन्नतापूर्वक भोजन करेगा निर्बल हो तो भोजनमें किसी प्रकारका विघ्न होजायगा ॥३६॥ अनुष्टु०-लग्नेलाभेचसत्खेटयुत सुभोजनम् || जीवेलग्नेसितेवापि भोज्यंदुःस्थितावपि ॥ ३७ ॥ लग्न तथा लाभस्थानमें शुभग्रह हों अथवा इन्हें देखें तो सुभोजन दूध दही घृत मीठा आदि मिलेंगे तथा लग्न में बृहस्पति वा शुक्रहों तो क्लेशनिवा- समें भी सुभोजन मिले ॥ ३७ ॥ अनुष्टु० - मंदेतमसिवालग्ने सूर्येणालोकितेथुते || लभ्यतेभोजनंनात्र शस्त्राङ्गीतिस्तदा कचित् ॥ ३८ ॥ शनि वा राहु लग्न में हो सूर्य्यकी दृष्टि भी हो तो यत्न करनेसे भी भोजन इस दिन प्राप्त न होवे कहीं शत्रका भय तो होवे ॥ ३८ ॥ अनुष्टु० - रविदृष्टंयुतंवापि लग्नंयदिनतत्रहि ॥ - उपवासस्तदावाच्योनक्तं वाविरसाशनम् ॥ ३९ ॥ जो लग्न सूर्य्यसे युक्त वा दृष्टभी न हो तो प्रथम तो निराहारही होवे अथवा रात्रिको निरस भोजन रूखा सूखा मिले ॥ ३९ ॥ अनुष्टु० - चन्द्रे कर्मगतेभोज्यमुष्णशीतसुखेकुजे ॥ तुर्यस्थखेटवशतो भोज्यान्नरसमादिशेत् ॥ ४० ॥ जो दिन वा पृच्छा लग्नसे चन्द्रमा दशम हो तो ( उष्ण ) गर्मागर्म भोजन मिले जो मंगल दशम हो तो ( शीत ) ठंढावासी भोजन मिले और चतुर्थ - स्थान में जो ग्रह हो उसके उक्त रसानुसार मिले जैसे सूर्य से कडुआ चन्द्रमासे सलोना, मंगलसे तीखा, बुधसे मिलाहुआ. बृहस्पतिसे मीठा शुक्रसे खढा शनिसे ( कषाय ) क्वाथ कांजी सिरका आदि बहुत दिनका संपादित मिलते हैं ॥ ४० ॥ अनुष्टु० - स्निग्धम सितेतुय्येंतैल संस्कृतमर्कज ॥ नीचोपगेकदशनंविर [न्नमसंस्कृतम् ॥ ११ ॥