पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९७

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भाषाटीकासमेता । अथ मृगयाविचारः | भु० ० - सवीय्यौकुजज्ञौनृपाखेट सिद्ध्यै नसिद्ध्यैयदावीर्य्य- हीनाविमौस्तः ॥ जलाखेटमा :सवीय्यै ग्रह क्षैर्जलाख्यैनंगा- ख्यैर्नगाखेटमाहुः ॥ ३४ ॥ दिनप्रवेश लग से जो मंगल बुध बलवान् विहित स्थान में हों तो इस दिन. प्रष्टा राजाकी सिकार खेलनेमें कार्य्यसिद्धि होगी जो उक्त ग्रह बलहीन हों तो सिकार नहीं मिलेगी पूर्व संज्ञाप्रकरण में जलचर पर्वतचर, राशि और ग्रहभी कहे हैं उनके अनुसार फल कहना जैसे जलचर राशि एवं ग्रह बलवान्हों तो जलचर जीवोंकी सिकार होगी जो पर्वतचर राशिग्रह बल- वान् हों तो वनचरमृगया होगी विशेषतः दिनप्रवेश लग्न जलचर राश्यादि जैसे स्वभावका हो तथा जैसे स्वभावके ग्रहोंसे युक्त वा दृष्ट हों वैसी ही मृगया मिलती है, मिश्रितमें फलमी मिश्रितही कहना ॥ ३४ ॥ अनुष्ट० - लग्नास्तनाथौकेन्द्रस्थौनिर्बलौक्लेशदायिनी ॥ मृगयोक्ताशुभफलाबलाढ्यौयदितौपुनः ॥ ३५ ॥ लग्नेश सप्तमेश केंद्र में हों तथा बलवान् हों तो खसे और उक्त ग्रह निर्बल हों तो क्लेशं देनेवाली मृगया होगी ॥ ३५ ॥ अथ भोजनचिंता । लग्नाधिपोभोज्यदातासुखेशोभोज्यमीरितम् || बुभुक्षामदपः कर्मपतिभक्तेति चिंतयेत् ॥ ३६ ॥ दिनप्रवेश लग्नसे वा प्रश्नलनसे लग्नस्वासी भोजनदेनेवाला चतुर्थेश भो जनयोग्य अन्न सप्तमेश भोजनकी इच्छा अर्थात् भूख वा रुचि और द- शमेश भोजन करनेवाला जानना इनके बलाबलसे उक्त कामोंकी प्राप्ति अ-. प्राप्ति कहनी जैसे लग्नेश शुभस्थानगत बलवान् हो तो भोजन देनेवाला भो - जन श्रद्धासे देवे निर्बल हो तो वह ( अश्रद्धा ) कोपादिसे देवे ऐसेही चतुर्थेश बलवान् हो तो भोज्य अन्न अच्छा मिलेगा निर्बल होनेमें न मिले वा निंय 4 ( १८९ )