पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९९

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भाषाटीकासमेता । (१९१) शुक्र चतुर्थ हो तो घीके पकवान शनि चतुर्थ हो तो तेलके पकवान तथा सरस मिलें, जो चतुर्थमें नीचगत ग्रह हो तो निकम्मा स्वादरहित कच्चा पदार्थ भोजन मिले ॥ ४१ ॥ उपजा०-सूर्य्यादिभिर्लग्रगतैः सवीर्ये राजादिगेहे भुजिमामनंति ॥ सुखेसुखेशेसबलेसुभोज्यं चरादिकेस्या दसकृत्सकृद्धिः ॥ ४२ ॥ सूर्यादिकोंगें जो उच्चादि बलयुक्त लग्नगत हो उसके जातिअनुसार राजादिके घरमें भोजन होवे जैसे सूर्य्यसे राजगृह चंद्रमासे वैश्य मंगलसे क्षत्रिय बुधसे शूद्र बृहस्पतिसे ब्राह्मण शुक्रसेभी ब्राह्मण और शनिसे शूद्रके, जो चतुर्थेश बलवान् चतुर्थहीमें हो तो अनेक पकवान युक्त भोजन मिले जो चतुर्थमें दुष्ट ग्रह हो तो कष्टसे मिले जो लग्नमें चरराशि हो तो अनेक- वार, स्थिरराशि हो तो एकवार मिले द्विस्वभाव हो तो दोवार ॥ ४२ ॥ अनुष्ट ० - मूलत्रिकोणगेखेटेलग्नेपितृगृहेशनम् || • मित्रालये मित्रभस्थे शत्रुहरिगेहगे ॥ ४३ ॥ लग्नगत ग्रह अपने मूलत्रिकोणमें हो तो पिताके वा अपने घरमें मित्ररा- शिका हो तो मित्रके शत्रुराशिका हो तो शत्रुके घरमें भोजन होवे लग्नमें कोई ग्रह न हो तो जिसकी पूर्ण दृष्टि लग्नपरहो उसके अनुसार भोजनगृह कहना४३ शुभेक्षितेयतेलग्नेबलाढये स्वगृहेभुजिः || ग्रह राशिस्वभावेन यत्नादन्यत्रचिंतयेत् ॥ ४४ ॥ लग्न शुभ ग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो बलवान् भी हो तो अपने घरमें भोजन होवे ऐसेही ग्रहकी राशि स्वभावके अनुसार यत्नसे औरचरभी भोजनके कहना ४४ उपजा० - तिला मर्के हिमगौसुतंडुला भौमे मसूराश्चणकाश्चभोज्यम् || बुधे समुद्राः खलु राजमाषा गुरौ सगोधूमभुजिः सवय्यें ॥ ४५ ॥ लग्नगत जो बलवान हो तथा लग्नमें न हो तो दृष्टिवालेसे अन्न कहना जैसे सूÆसे तिल चंद्रमासे चावल मंगलसे मसूर और चना, बुधसे मूंग तथा राजमाप ( खांश ) बृहस्पतिसे गेहूं ॥ ४५ ॥ ●- उपजाति • - Jक्रेयवाबाजरिकायुगंधराःशनौकुलित्यादिसमाषम म् ॥ भोज्यंतुषान्नशिखिराहुवीर्य्यच्छुभंग्रहालोकनतःसहर्षम् ॥ ४६॥