पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१५२

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(१४४) ताजिकनीलकण्ठी | मुंथा और मुंथेश लग्न और लग्नेश ये चारों पापग्रहों के बीच हों तो रोगोत्पत्ति करते हैं. यहां एक वा दो के पापांतःस्थ होनेमें रोग, चारोंसे मृत्युतुल्य कष्ट जानना, और षष्ठेश शुभग्रह छठेही स्थानमें हो तो स्त्रीप्राप्ति होती है, परन्तु कन्या मिथुन तुलाका शुक्र छठे कफरोग करता है यह ताजिकांतर- मृत है ॥ १४ ॥ अनुष्टु० - रोगकर्त्तायत्रराशावंशेस्यादनयोर्वेली ॥ तत्स्थानंतस्यरोगस्यवाच्यंराशिस्वरूपतः ॥ १५ ॥ उक्तयोगोंसे रोगकर्त्ता ग्रह जानकर रोगका स्थान जाननेकी यह विधि है कि वह ग्रह जिस राशिमें एवं जिस नवांशकमें है उनमेंसे जो अधिक बली उसका कालांग राशिस्वरूपमें जो स्थान है उसमें रोग उत्पन्न करता है बुद्धिसे बलावल विचारके कहना ॥ १५ ॥ अनुष्ट ० - जन्मषष्ठाधिपेभौमे वर्षेपष्टगतेरुजः || क्रूरेत्थशालेविपुलःशुभदृग्योगतस्तनुः ॥ १६ ॥ जन्मका पष्टेश मंगल वपेमें छठाही हो तो रोग करता है, इसमें भी विशेष विचार है कि, इसके साथ पापग्रहका इत्थशाल हो तो रोग बहुत, शुभग्रह का हो तो अल्परोग होता है ॥ १६ ॥ इति श्रीमहीधरकृतायां ता० नीलकंठीमापाटी • पृष्ठभावफलाध्यायः॥६॥ अथ सप्तमभावविचारः ॥ उपजा० - बलीसितोव्दाधिपतिःस्मरस्थः स्त्रीपक्षतः सौख्यकरो विचित्यः ॥ ईज्येक्षितोत्यंतसुखं कुजेनाधिकारिणाप्रीतिकरो मिथः स्यात् ॥ १ ॥ वर्षेश शुक्र बली होकर सप्तमस्थान में हो तो स्त्रीपक्षसे सुख करता है, और बृहस्पतिकी दृष्टिभी इस पर हो तो अत्यंतही स्त्रीसुख करता है, जो ऐसे शुक्रपर अधिकारी मंगलकी दृष्टि हो तो स्त्रीपुरुपकी परस्पर प्रीति बढाता है, ( जो शुक्र सप्तम निर्बल नष्ट दग्ध हो तो स्त्रीसे कष्ट देता है ) ॥ १ ॥ अनुष्टु० - घेक्षितेजारतास्याकृष्च्यामंदेनवृद्धया || गुरुदृष्टयानवाभार्य्या संततिस्त्वरितंततः ॥ २॥