पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१५१

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भाषाटीकासमेता । (१४३) मुथशिली हो तो रोग बढताहै, विपरीत में फलभी विपरीत जानना, जैसे दिनका जन्म हो और कृष्णपक्षका चन्द्रमा मंगलसे मुथशिली हो तो रोग करता है, ऐसाही चन्द्रमा शनिसे मुथशिली हो तो, रोगनाश करता है ॥ ९ ॥ अ०-ख दृशिवित्केतुयुतेब्दनिखिलंगदाः || अधिकारीबलीसूतावब्देकेतुज्ञयु था ॥ १० ॥ ऐसाही सूर्य मंगल वा शनिके साथ मुथशिली तथा बुध केतुयुक्तभी होवे तो सम्पूर्ण वर्षमें रोग रहे तथा जन्मकालका अधिकारी बुध वर्षमें केतुयुत हो तो वही फल देता है ॥ १० ॥ 0. अनु ~ चतुर्थेस्तेच मुथहाक्षुत चाशनीक्षिता ॥ शूलंपापखगै तच्छ्रलंपरिणामजम् ॥ ११ ॥ चतुर्थ वा सप्तम स्थान में मुंथा हो शनिसे युक्त वा शत्रुदृष्टि से दृष्ट हो तो शूलरोग होता है तथा चतुर्थ सप्तममें मुंथा किसी पापग्रहसे युक्त वा ऋष्ट हो तो किसी कर्म वा किसी रोगसे शूल उत्पन्न होवे ॥ ११ ॥ वसंततिल - जन्मस्थजीवसितराशिगते महीजेसूर्य्याशुगेपि - टकशीतलिकादिमां म् || शीतोष्णगंडभवरुक्सबुधेचसेंद •ष्टंभगंदररुजोपि सगंडमालाः ॥ १२ ॥ जन्ममें जिस राशिका बृहस्पति वा शुक्र हो उसी राशिका वर्ष में मंगल अस्तंगत हो तो पिटका ( फुन्शी ) शीतला, दनु आदि रोग तथा शीतपित्त और गंडमाला आदि रोग होवें और जन्मका बृहस्पति शुक्रकी राशिका बुध वर्षमें चन्द्रमा सहित हों तो कुष्ठादि रोग होवें ॥ १२ ॥ अनुष्टु० - जन्मलप्रेंथिहानाथौष पापान्वितेक्षितौ । निर्बलौज्वरपीडांगवैकल्याद्यतिकष्टदौ ॥ १३ ॥ जन्मलङ्गेश एवं मुंथेश छठे स्थानमें पापयुक्त वा पापदृष्ट और निर्बल हों तो ज्वरपीडा तथा किसी अंगकी विकलतासे अति कष्ट देते हैं ॥ १३॥ अनुष्टु० - मुथहालमत थाः पापांतः स्थास्तुरोगदाः ॥ पशेपष्टगेसौम्येत्रियःप्राप्तिरितीते ॥ १४ ॥