पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१५०

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(१४२) ताजिकनीलकण्ठी । ग्रहका धातु संज्ञाप्रकरण में कहा है उसके विकारसे रोग होने और जन्ममें जिस भावका शुक्र है उसमें वर्षकालका सूर्य्य हो तो धातुविकारसे रोग होवे, यहां श्लोक में जन्मकी शुक्रराशिका सूर्य ऐसा अर्थ प्रकट होता है, परन्तु जन्ममें सूर्य्य जिस राशिका है वर्षमें भी उसी राशिका होगा शुक्रकी राशि में कैसे जानना संभव है, जो सूर्य शुक्र एकही राशिमें किसी के साथ हों तब यह सम्भावना है तो उसके नित्यही यह योग होगा इससे यह अर्थ वर्ष में योग्य नहीं है, इसलिये शुक्रभावका सूर्य्य होना प्रमाणहै. जो जन्ममें सूर्य्यशुक्र एक राशिमें हों और वर्षमें शुक्र छठे पडजाय तो स्माररोग ( कामविकार ) रोग होताहै रोगसहम सपाप हो तो विशेषसे कहना ॥ ६॥ सु०प्र० - सपापेगुरौरंध्रगे लग्नआरेसतंद्रास्ति मूच्छौगनाशः सचंद्रे ॥ खलाः सूतिकेंद्रेव्दलग्नेरुगाप्त्यैकफोद्वयंत्रिगैरीक्ष्यमाणे सितेस्यात् ॥ ७ ॥ पापयुक्त बृहस्पति अटम और मंगल लग्नमें हों तो तन्द्रा ( आलस्य सहित मूर्छा) होवे, जो चन्द्रमायुक्त: अष्टम बृहस्पति और लममें मंगल हों तो किसी रोगसे किसी अंगका नाश ( अति पीडा ) होवे, जो पापग्रह जन्मके केन्द्रमें हों और वर्षमें लग्नके हों तो रोगोत्पत्ति करते हैं. यथा नरराशिमें बैठे हुये पापग्रहों से शुक्र क्षतदृष्टि से देखा जाय तो वर्षमें कफरोग होताहै ॥ ७ ॥ सु०प्र० - दिनेब्दप्रवेशोविलग्नेन्दसूत्योर्यदाहक हद्दागृहाद्योधिकारः ॥ रखेर्वाकुजस्यात्रपीड ज्वरात्स्यादृशासौम्य खेटोत्थया वैसुखाप्तिः ॥ ८ ॥ दिनका वर्पप्रवेश हो और जन्म तथा वर्षकालके लग्नमें सर्थ्य वा मंगलका स्वगृह हद्दा द्रेष्काण आदि कोई अधिकार हो तो उस वर्षमें ज्वरसे कष्ट होवे, जो लग्नपर शुभ ग्रहकी दृष्टि भी हो तो परिणाममें सुख होगा ॥ ८ ॥ अनुष्टु० - निशिसुतौवर्द्धमानेचन्द्रेभौमेत्थशालतः ॥ रुग्नश्येदेधतेमंदेत्थशालाद्वयत्ययोन्यथा || ९ रात्रिका जन्म हो तथा चन्द्रमा वर्द्धिष्णु ( शुक्लपक्षका ) हो और वर्षमें मंगलके साथ मुथशिली हो तो रोगनाश होवे और ऐसाही चन्द्रमा शनिसे >