पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४९

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भाषाटीकासमेता । (१४१) अक्षिरोग होवें तथा ऐसाही शुक्र छठे स्थानमें हो तो पित्तरोग होवे, जो पुरुष राशिका शुक्र छठा हो और षष्ठेशकी दृष्टिभी इस पर हो तो श्लेष्मरोग. होवे और ऐसाही चन्द्रमा छठा हो तो कफसंबंधी रोग होवे ॥ २ ॥ इं०व० - एवं बुधेपापयुतेब्द पेऽरौवातोत्थरोगोजनिलग्ननाथः ॥ पापोब्दपेनक्षुत दृष्टिदृष्टो रोग दोमृत्युकरःसपापः ॥ ३ ॥ जो वर्षेश बुध पापयुक्त वक्रगति होकर छठे स्थानमें हो तो वातप्रधान रोग होवे, जो जन्मलनका स्वामी पाप हो और वर्षेश इसे क्षुतदृष्टि से देखे तो रोग देनेवाला होताहै जो वही पाप जन्मलग्नेश और पापयुक्त भी हो तो मृत्युतुल्य कष्ट फल देताह्रै ॥ ३ ॥ • अनुष्टु०-सूत्यार्किमेल गतेरूक्षशीतोष्णरुग्भयम् || शनी तेयाप्यतास्यात्सपापेमृत्युमादिशेत् ॥ ४ ॥ जन्ममें जिस राशिका शनि है वह राशि वर्षका लग्न हो तो रूक्ष एवं शीतपित्तके द्वंद्व व रोगका भय होवे इस पर शनिकी दृष्टिभी होवे तो और नियरोग होवे और वही जन्मकी शनि राशि वर्षलय में हो शनिकी दृष्टि और पापयुक्त भी होवे तो मृत्युभय होवे ॥ ४ ॥ अनुष्टु० - एवं भौमेक्षुतदृशारक्तपित्तरुजोग्निभीः ॥ ततोन्येबदुलारोगाः शुभदृष्टक्षैरुजाल्पता ॥ ५ ॥ ऐसेही जन्मकालीन मंगलकी राशि वर्षलग्न में हो पापग्रह क्षुतदृष्टिसे देखें तो र एवं पित्तरोग तथा अग्निभय होवे, जो यही जान्मिक मंगल राशिवर्षमें होकर इसीमें मंगलभी हो यद्दा मंगलकी दृष्टि भी उस पर हो तो उक्तरोग अल्पही होवें ॥ ५॥

वसंतति॰-लाधिपाब्दपतिषष्ठपतीत्थशालोरोगप्रदःखचर- धातुविकारतः स्यात् ॥ स्मारोगदोजनिसितांश्रितभाजिसू- य्यैषष्ठे सितेपततिरुक्सहमं सपापम् ॥ ६॥ लग्नेश वा वर्षेशसे षष्ठेशका इत्थशाल हो तो वातादि धातुमें जो उस