पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४८

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(१४०) ताजिकनीलकण्ठी । जन्मकाल में पंचमेश शुक्र हो वर्षमें बलवान् होकर पंचममें हो तथा लग्नेशसे इत्थशाली हो तो पुत्र देता है और जन्मका शनि जिस राशिमें हो वह वर्षमें पंचम हो तथा कोई अधिकारी पापग्रह उसे देखे वा पंचम हो तो पुत्रको पीडा देता है ॥ ७ ॥ अनुष्ट ० -- यद्राशिगोग्रहः सूतौसराशिस्तत्पदाभिधः || वलीजन्मोत्थसौख्याय वर्षॆतद्दुःखदोन्यथा ॥ ८ ॥ जन्मकालमें जो ग्रह जिस राशिका है वह उसका पद कहाता है वह यदसंज्ञक वर्षराशिमें उसी भावमें हो, यद्वा वह ग्रह उसी पदमें हो तथा वह ग्रह उसी भावमें हो तो बलवान् होने में तद्भावसंबंधी शुभ फल देता है इसमें विचार बहुत हैं सभी भावोंमें बुद्धिवलसे विचारना || ८ || इति श्रीमहीधरकतायां • नी० भा० पंचमभावफलानि ॥ ५ ॥ अथ षष्टभावविचारः। व॰ति०-मंदेव्दपेनृजुगते पतितेरुजार्तिः स्यात्सन्निपातभव- भीररित्रशूलम् || गुल्माक्षिरोगविषमज्वर भीगुरौतु पापार्दिते- निलरुजोपिकंवूलशून्ये ॥ १ ॥ वर्षेश शनि वक्रगति होकर छठे स्थान में हो तथा पापाकांतभी हो तो बातसंबंधी रोगसे पीडा तथा सन्निपात (वात पित्त कफ) तीनोंके साथही कोप होनेसे भय तथा शूलरोग पेटमें गुल्मरोग नेत्ररोग और विपम ज्वरका भय होवे, जो बृहस्पति वचग्गति पापाक्रांत छठे स्थानमें हो और चंद्रमासे कंबूल योग न हो तो वातरोग कमलवातादि तथा नेत्ररोगभी होवे ॥ १ ॥ व०ति० - स्यात्कामलाख्यरुगपीत्थमसृज्यसृग्भीः पित्तंचरि- प्फगरवौदृशिशूलरोगः ॥ पित्तंपुनारिपुगृहेत्रभृगौतृभेरौश्लेष्मा- भयेक्षिततेपिकफोरिगेंदौ ॥ २ ॥ मंगल वक्रगति होकर छठे स्थानमें पापपीडित हो और वर्षेशभी हो तो · रुधिरविकारसे रोग होवे. पित्तरोग भी होवें ( इस श्लोक में कामलाख्य रोग पूर्वोको योगका संबंधी है ) और ऐसाही सूर्य्य छठा हो तो नेत्रशूलादि