पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४७

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भाषाटी समेता । (१३९ ) अनुष्टु० - जीवोजन्मनियद्राशावब्दसौ तगोबली || पुत्रसौख्यायभौमोज्ञोवर्षेशोत्र सुताप्तिदः ॥ ३ ॥ जन्मकालमें बृहस्पति जिस राशिमें है वह राशि वर्षमें पंचम हो तथा बलवान् वह राशि हो तो पुत्रप्राप्ति सौख्य देता है और मंगल वा बुध वर्षेश होकर जन्मकी गुरु राशिमें पंचमस्थानगत हों तो वे भी पुत्रप्राप्ति करते हैं ॥ ३ ॥ हर्षिणी- यत्रेज्यो जनुषिगृहेविलसमेतत्पुत्रात्यै बुधसितयो- रपत्थिमूह्यम् ॥ यद्राशौ जनुषिशनिः कुजश्चसोब्दे पुत्रार्तित - नुसुतगः करोतिनूनम् ॥ ४ ॥ जन्मकालमें बृहस्पति जिस राशिमें है वह वर्ष में लग्न हो तो पुत्रप्राप्ति करता है ऐसेही बुध शुक्रका फलभी जानना जैसे बुध और शुक्र जन्मके जिस राशिमें हों वह राशि लग्नमें होनेसे पुत्रप्राप्ति कहना, और जन्ममें जिस राशिका शनि वा मंगल हो वह राशि वर्षलग्न में वा पंचम में हो तो पुत्रकष्ट करता है, यहां शनिकी राशि लग्नमें मंगलकी राशि पंचम होनेमें यह योग होता है यह निकृष्टफल है ॥ ४ ॥ अनुष्टु ० -- पुत्रेसुतस्य सहमे त्रात्यैशुभदृष्टियुक् ।। ल पुत्रेश्वरौ पुत्रे पुत्रदौबलिनौयाद ॥ ५ ॥ - चंद्रोजीवोथवा ऋःस्वोच्चगः सुतःसुते ॥ वक्रीभौमः सुतस्थश्चेदुत्पन्नसुतनाशनः ॥ ६॥ जो लग्नसे पंचमभावमें तथा पुत्रसहममें शुभ ग्रह हों वा इनकी दृष्टि हों तो पुत्रप्राप्ति करते हैं और लग्नेश पुत्रभावेश बलवान् होकर पंचममें हों तो भी पुत्रप्राप्ति करते हैं ॥ ५ ॥ तथा चंद्र बृहस्पति वा शुक्र अपनी उच्चराशि उपलक्षणसे उच्चांशकका पंचम वा लग्न में हो तो पुत्र देते हैं और वक्रगति मंगल पंचम हों तो पुत्रनाश करता है ॥ ६ ॥ • जा० सुताधिपोजन्मनिभार्गवोब्दपत्रेविल धिपतीत्थशाली ॥ त्र दो मंदपदस्थपुत्रे पापाधिकारीक्षितआत्मजार्त्तिः ॥ ७ ॥