पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४६

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(१३८). ताजिकनीलकण्ठी । करते हैं, शुभ दृष्ट हों तो नहीं क्लेश देते हैं अथवा चतुर्थेशके साथ शनि मंगल हों तो पूवात फल देतेहैं. जो ये शनि मंगल सुखमें वा सुखेशके साथ हों और शुभग्रह भी साथ हों वा देखें तो पिताको कष्टहोकर परिणाममें सुखभी होता है ४ ॥ वसन्तति - मातुः पितुश्च सहमेतनुपेत्थशालेतुय्र्य्यो पिचेत्थमव- गच्छसुखानिपित्रोः ॥ चेदष्टमाधिपतिनाकृतमित्थशालंपि- त्रोर्विपद्भयमनिष्टकृतेसराफे ॥ ५ ॥ मातृपितृसहममें वर्ष लग्नेशका इत्थशाल हो तो माता पिता का सुख जानना ऐसेही चतुर्थभावमें वर्षलग्नके स्वामीके इत्थशालसे भी मातापि- ताको सुख जानना और मातृ पितृ सहम वा सुखभाव में वर्षलझसे अष्टम- भावेशका इत्थशाल हो तथा अशुभफल दाता ग्रहसे ईसराफ योग हो तो मातापिताको विपत्ति तथा भय जानना ॥ ५ ॥ इति श्रीमहीधरकृतायां नीलकंठीभाषाटी कार्यावर्षतंत्रे चतुर्थभावविचारः ॥ ४ ॥ अथ सुतभावविचारः । उपजा० - पुत्रायगोवर्षपतिर्गुरुश्चेत्सूय्यरसौम्योशनसोऽथ वेत्थम् ॥ सत्पुत्रसौख्यायखलार्दितास्तेदुःखप्रदाः पुत्रतएवचित्याः ॥ १ ॥ वर्षेश: बृहस्पति पंचम वा ग्यारहवें स्थानमें हो अथवा सूर्य मंगल बुध शुक्रमेंसे कोई वर्षेश होकर पांचवां वा ग्यारहवां हो तो सत्पुत्रसे सुख मिले और यही ग्रह उक्तप्रकार होकर पापपीडित भी हों तो पुत्रजनित अस्वा- स्थ्य कलहादि क्लेश विचारना ॥ १ ॥ वसन्तति ० - पुत्रेसुतस्यसहमे सबलेताप्तिः सौम्येक्षितेप्यति सुखयदितत्रवपैट् ॥ सौम्येक्षितःशुभगृहेसकुजोबुधश्चेत्पुत्रा- यगः सुतसुखंविबलाः सुतार्तम् ॥ २ ॥ पंचमभाव वा पुत्रसहम बलसहित हो तो पुत्रप्राप्ति होती है. शुभग्रह- की दृष्टि भी उसपर हो तो अति सुख पुत्रसंबंधी होता है, जो वपैश भी पंचम हो तो उक्त फल देता है और शुभ ग्रहोंकी राशिमें मंगलके साथ बुध पंचम बा ग्यारहवाँ हो शुभ ग्रह भी इन्हें देखें तो पुत्रसुख देते हैं ऐसा निर्बल बुध पंचम वा ग्यरहवां हो तो पुत्रंको पीढ़ा करता है || २ ||