वायुपुराणम् नगरप्रोगणैः । वत्सं चित्ररथं कृत्वा शुचीगन्धांस्तथैव च सेवां विश्वायमुवानोद्दोग्धा पुत्रो मुनेः शुचिः | गन्धर्वराजोऽतिवलो महात्मा सूर्यसन्निभः नवो वसुंधरा । तत्रोषधोर्मूर्तिमती रत्नानि विविधानि च मानुदिनवांतेषां मेर्दोग्धा महागिरिः । पात्रं तु शैलमेवाऽऽसोत्तेन शैलः प्रतिष्ठितः ग्रूयते वृक्षवद्भिः पुनदुग्धा वसुंधरा | पलाशपात्रमादाय दुग्धं छिन्नमरोहणम् पुष्पितः नः पक्षो यत्नो यशस्विनो । सर्वकामदुधा दोग्ध्री पृथिवी भूतभाविनी मेरा पानी विधाना व वारणी च वसुंधरा | दुग्धा हितार्थं लोकानां पृथुना इति वः श्रुतम् ॥ मनचयनोल्स्य प्रतिष्ठा योनिरेव च ॥१६५ इति श्रीमहापुराणे वागुप्नीले पृथिवीदोहनं नाम द्विपष्टितमोऽध्यायः ॥ ६२॥ maharage ॥१८६ ॥१६० ॥१६१ ||१६२ ।।१६३ ॥१६४ feer हुए, यह नमगत ने उमा म्प क्षीर से उन देवताओं की महीने भर की तृप्ति होती है | पीके पात्र में चित्ररथ को तथा शुद्धि गन्छों को बछड़ा बनाकर नमिष, उनमें मुनि परम पवित्रात्मा, गन्यवंशज, महात्मा सूर्य के समान ज (12:55 इसे वाण हा । उन्नर वनुत्परा देवी का बोहन पर्वों ने किया, उस दोहन कार्य में भूमि- विविध रूप में थे। उन पबंधों में बहा हिमालय तथा दुहने वाला था, जो था उन सोपधियों से पर्वत की प्रतिष्ठा हुई 1१८८-१६६ भूप में और स्थाओं के पक्ष को लेकर प्ररोहों के तोड़ देने पर गिरने वागे दुमका दोहन १९९५ ईसवे दुष्माता पृश्किा पक्ष हुआ। सभी मनोरयों को पूर्ण रखनेवाली, दो (ऋषयशस्वपरागको वारण करनेवाली, पान भी प्रহविज्ञान नेताम है पृथ्वी का दोहन लोकहिन के लिए राजा पू हमने है। सभी जीवों की तथा उत्पन्न करने यामी ঞxy ই से भाकृअध्याय समाप्त ॥६॥