पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६०

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त्रिषष्टितमोऽध्यायः अथ त्रिषष्टितमोऽध्यायः पृथुवंशानुकीर्तनम् सूत उवाच आसीदियं समुद्रान्ता मेदिनीति परिश्रुता | वसु धारयते यस्माद्वसुधा तेन चोच्यते मधुकैटभयोः पूर्व मेदसा संपरिप्लुता । ततोऽभ्युपगमाद्राज्ञः पृथोर्वेनस्य धीमतः इयं चाऽसीत्समुद्रान्ता मेदिनीति परिश्रुता | दुहितृत्वमनुप्राप्ता पृथिवोत्युच्यते ततः प्रथिता प्रविभक्ता च शोभिता च वसुंधरा | सस्याकरवती राज्ञा पत्तनाकरमालिनी || चातुर्वर्ण्य समाकीर्णा रक्षिता तेन धीमता एवं प्रभावो राजाऽऽसीद्वैन्यः स नृपसत्तमः | नमस्यश्चैव पूज्यश्च भूतग्रासेण सर्वशः ब्राह्मणेश्च महाभागैर्वेदवेदाङ्गपारगैः । पृथुरेव नमस्कार्यो ब्रह्मयोनिः सनातनः पार्थिवैश्च महाभागैः प्रार्थयद्भिर्महद्यशः । आदिराजा नमस्कार्यः पृथुर्वैन्यः प्रतापवान् २३६ ॥२ ३॥३ १॥४ ॥५ ॥६ अध्याय ६३ सूतजी बोले- यह समुद्र पर्यन्त फैली हुई वसुन्धरा मेदिनी ( मेद - चर्बी से उत्पन्न होने वाली ) इस नाम से विख्यात है । एवं वसु घन अथवा अन्न धारण करने के कारण यह वसुधा नाम से भी पुकारी जाती है |१| पूर्वकाल में यह मधु तथा कैटभ नामक दानवों की चर्बी से आकीर्ण थी । यही कारण है कि समुद्र पर्यन्त फैली हुई यह पृथ्वी मेदिनी नाम से विख्यात हुई। राजा पृथ् की पुत्री होने के कारण उसे पृथ्वी नाम से भी लोग पुकारते हैं। उस परम बुद्धिमान् राजा द्वारा वह वसुन्धरा प्रसिद्ध की गई, अनेक भागों में विभक्त की गई, शोभित की गई, विविध प्रकार के अन्नों ओर आकरो (खनि) से समन्वित की गई, बड़े-बड़े नगर-समूहों से संयुक्त की गई, ब्राह्मणादि चारों वर्गों के लोगों से आकीर्ण की गई तथा रक्षित हुई |२-४१ राजाओं में श्रेष्ठ, वेन पुत्र राजा पृथु इस प्रकार का अमित प्रभावशाली सम्राट् था | सभी जीव समूह उसे नमस्कार करते थे, पूजा करते थे | वेबो एवं वेदाङ्गों के पारगामी विद्वान् एवं महाभाग्यशाली ब्राह्मणों द्वारा नमस्कार करने योग्य एकमात्र राजा पृथु ही था क्योकि वह ब्रह्म से समुद्रभूत था, तथा उसका प्रभाव कभी नष्ट होने वाला नही था । उस प्रतापशाली आदि राजा वेन पुत्र पृथु की परमभाग्यशाली १