पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६१

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५४० वायुपुराणम् योधैरपि च सङ्ग्रामे प्रार्थयानैर्जयं युधि | आदिकर्ता नराणां वै नमस्यः पृथुरेव हि यो हि योद्धा रणं याति कीर्तत्वा पृथुं नृपम् । स घोररूपे सङ्ग्रामे क्षेमी तरति कीर्तिमान् वैश्यैरपि च राजर्षिर्वैश्यवृत्तिसमास्थितैः । पृथुरेव नमस्कार्यो वृत्तिदाता महायशाः एते वत्सविशेषाश्च दोग्धारः क्षोरमेव च । पात्राणि च मयोक्तानि सर्वाण्येव यथाक्रमम् ब्रह्मणा प्रथमं दुग्धा पुरा पृथ्वी महात्मना । वायुं कृत्वा तदा वत्सं बीजानि वसुधातले ततः स्वायंभुवे पूर्वं तदा मन्वन्तरे पुनः । वत्सं स्वायंभुवं कृत्वा दुग्धाऽऽग्नीध्रेण वै महो मनौ स्वारोचिषे दुग्धा मही चैत्रेण धीमता | [* मनुं स्वारोचिषं कृत्वा वत्सं सस्यानि वै पुरा ॥१४ उत्तमेऽनुत्तमेनापि दुग्धा देवभुजेन तु | मनुं कृत्वोत्तमं वत्सं सर्वसस्यानि धीमता] पुनश्च पश्चमे पृथ्वी तामसस्यान्तरे मनोः । दुग्धेयं तामसं वत्सं कृत्वा तु वलबन्धुना चारिष्णवस्य देवस्य संप्राप्ते चान्तरे मनोः । दुग्धा मही पुराणेन वत्सं चारिष्णवं प्रति चाक्षुषेऽपि च संप्राप्ते तदा मन्वन्तरे पुनः । दुग्धा मही पुराणेन वत्सं कृत्वा तु चाक्षुषम् ॥१३ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ 115 118 ॥१० ।।११ ॥१२ नृपसमूहों द्वारा प्रार्थना की जाती थी । वास्तव में वह सर्वथा नमस्कार के योग्य था | संग्राम भूमि मे उस महाराज पृथु की विजय की प्रार्थना बड़े-बड़े योद्धा लोग करते थे और वह वास्तव में विजय प्राप्त करता था, मनुष्यों का सर्वप्रथम पालक वह पृथ् ही नमस्कार का पात्र था । जो वीर पुरुप राजा पृथु के यशो का कीर्तन कर रणभूमि को जाता है वह कल्याण भाजन यशस्वी योद्धा विकट संग्राम में भी विजय लाभ करता है |५-६ | वैश्य वृत्ति (व्यापार करने वालों का भी वह महायशस्वी राजषि पृथु नमस्कार का पात्र था, क्योकि उन्हे भो वह वृत्ति देता था । पृथ्वी दोहन के समय ऊपर कहे गये बछड़े, दुहने वाले, दुग्ध, पात्रादि मभो का वर्णन मै क्रमशः सुना चुका |१०-११। प्राचीन काल मे सर्वप्रथम भगवान् ब्रह्मा ने पृथ्वी का दोहन किया था, उस समय वायु को बछड़ा बनाकर पृथ्वो तल पर बीजों को दुहा गया था । उसके बाद पुनः स्वायम्भुव मनु को बछड़ा बनाकर आग्नीध्र ने पृथ्वी का दोहन किया था । तदनन्तर स्वारोचिष मन्वन्तर मे परम बुद्धिमानृ चैत्र ने स्वारोचिप मनु को बछड़ा बनाकर अन्नों का दोहन किया था । उत्तम मन्वन्तर में परम बुद्धिमान् सर्वश्रेष्ठ देवभुज ने उत्तम मनु को वछडा बनाकर सभी प्रकार के अन्नों का दोहन किया था |१२-१५। पुनः पाँचवे तामस नामक मन्वन्तर में वलबन्धु से तामस मनु को बछड़ा बनाकर यह पृथ्वी दुही गई थी । तदनन्तर पुनः चरिष्णव नामक मन्वन्तर में भी पुराण ने चारिष्णव को बछड़ा बनाकर पृथ्वी का दोहन किया । पुनः चाक्षुप नामक मन्वन्तर मे भी पुराण ने चाक्षुष मनु को बछड़ा कर पृथ्वी का

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ङ. पुस्तके नास्ति |