"ऋग्वेदः सूक्तं ३.१०" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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तवामग्ने मनीषिणः सम्राजं चर्षणीनाम | |
तवामग्ने मनीषिणः सम्राजं चर्षणीनाम | |
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देवं मर्तास इन्धते समध्वरे |
देवं मर्तास इन्धते समध्वरे ॥ |
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तवां यज्ञेष्व रत्विजमग्ने होतारमीळते | |
तवां यज्ञेष्व रत्विजमग्ने होतारमीळते | |
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गोपा रतस्य दीदिहि सवे दमे |
गोपा रतस्य दीदिहि सवे दमे ॥ |
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स घा यस्ते ददाशति समिधा जातवेदसे | |
स घा यस्ते ददाशति समिधा जातवेदसे | |
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सो अग्ने धत्तेसुवीर्यं स पुष्यति |
सो अग्ने धत्तेसुवीर्यं स पुष्यति ॥ |
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स केतुरध्वराणामग्निर्देवेभिरा गमत | |
स केतुरध्वराणामग्निर्देवेभिरा गमत | |
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अञ्जानः सप्त होत्र्भिर्हविष्मते |
अञ्जानः सप्त होत्र्भिर्हविष्मते ॥ |
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पर होत्रे पूर्व्यं वचो.अग्नये भरता बर्हत | |
पर होत्रे पूर्व्यं वचो.अग्नये भरता बर्हत | |
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विपां जयोतींषि बिभ्रते न वेधसे |
विपां जयोतींषि बिभ्रते न वेधसे ॥ |
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अग्निं वर्धन्तु नो गिरो यतो जायत उक्थ्यः | |
अग्निं वर्धन्तु नो गिरो यतो जायत उक्थ्यः | |
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महे वाजायद्रविणाय दर्शतः |
महे वाजायद्रविणाय दर्शतः ॥ |
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अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवान देवयते यज | |
अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवान देवयते यज | |
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होता मन्द्रो विराजस्यति सरिधः |
होता मन्द्रो विराजस्यति सरिधः ॥ |
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स नः पावक दीदिहि दयुमदस्मे सुवीर्यम | |
स नः पावक दीदिहि दयुमदस्मे सुवीर्यम | |
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भवा सतोत्र्भ्योन्तमः सवस्तये |
भवा सतोत्र्भ्योन्तमः सवस्तये ॥ |
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तं तवा विप्रा विपन्यवो जाग्र्वांसः समिन्धते | |
तं तवा विप्रा विपन्यवो जाग्र्वांसः समिन्धते | |
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हव्यवाहममर्त्यं सहोव्र्धम |
हव्यवाहममर्त्यं सहोव्र्धम ॥ |
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१९:४७, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
तवामग्ने मनीषिणः सम्राजं चर्षणीनाम | देवं मर्तास इन्धते समध्वरे ॥ तवां यज्ञेष्व रत्विजमग्ने होतारमीळते | गोपा रतस्य दीदिहि सवे दमे ॥ स घा यस्ते ददाशति समिधा जातवेदसे | सो अग्ने धत्तेसुवीर्यं स पुष्यति ॥ स केतुरध्वराणामग्निर्देवेभिरा गमत | अञ्जानः सप्त होत्र्भिर्हविष्मते ॥
पर होत्रे पूर्व्यं वचो.अग्नये भरता बर्हत | विपां जयोतींषि बिभ्रते न वेधसे ॥ अग्निं वर्धन्तु नो गिरो यतो जायत उक्थ्यः | महे वाजायद्रविणाय दर्शतः ॥ अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवान देवयते यज | होता मन्द्रो विराजस्यति सरिधः ॥ स नः पावक दीदिहि दयुमदस्मे सुवीर्यम | भवा सतोत्र्भ्योन्तमः सवस्तये ॥ तं तवा विप्रा विपन्यवो जाग्र्वांसः समिन्धते | हव्यवाहममर्त्यं सहोव्र्धम ॥