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पृष्ठम्:स्फुटचन्द्राप्तिः.djvu/४६

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1. 3. 5. 12. 13. 14 . 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22 . 23 . 24 . 25 . 26. 27 . 28 . 29. 30. 31. 32 . 33 . 34 . व्यग्रो जनः क्षुन्नाशे योगीश्वरो निराशा शिाखण्डी भवनेष1 नागो यानाधिपति : परिणयेऽङ्गनेच्छा कविकण्ठस्था कथा शीलसम्पद्यानन्दः श्रीर्विना न मुकुन्दात् निराधारोऽहिराज कुबेरो विकटधीः स्तेनानां इवा विरोद्धा दीर्घरिरंसुन नाके वानरो मधुपानाढ्य : घननिकरो निर्ययौ रीगे' धैर्यविपर्ययः स्थूलो गिरिश्चित्रकूट: स्तम्भमात्रो हि धीरधीस्त्रिनेत्रः प्रपदौ गुरोर्नम्यौ छन्नो' माणवकः किम् गानगोष्ठी सुखाय काकुध्वनिर्नकारात् तनुर्न नगरे श्री: D. स्मरगभ वनिता A. रावणो, corrupt. B. मात्रोऽहिः 2. 5 4. 9 9 10 6. 11 10 11 11 0 1 1 Bhaga 20 19 4 17 3 28 11 24 7 19 14 26 200 8 14 A. रोगो 27 10 23 24 43 15 21 17 29 42 40 22 52 10 19 23 25 29 38 55 23 B. निोद्धा, corrupt. ' 21 31 25 30 21 41 35 42 20 31 6 48 4 32 37 46 29 12 7 C Breaks of with this word. 47)