पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/७२

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स्वाराज्य सिद्धिः

के ( किमिति ) किस प्रयोजन से ( प्रवृत्तः ) प्रवृत्त हुश्रा
रेतोरक्त प्रसूतं जडमश्नचितं षड्विकारं त्वग
स्थि स्नायु क्रव्यान्त्र मज्जा रुधिरमय मति स्व
ल्प माध्यामयाऽऽढ्यम् । प्राणापाये मृदादि
प्रतिममपि च विट् कीट भस्मावशेषं देहं तं
मूढ कस्मादहमिति मनुषे केन वा वंचि
तोसि
॥३२॥
माता पिता के शुक्रशोणित से उत्पन्न हुआ, जड़, भोजन से बढ़नेवाला, छः विकारोंवाला, चमड़ी. हाड़, मांस, मेद, मजा और रुविरवाला, आति तुच्छ मानसिक और शारीरिक दु:खोंवाला, मरण होनेपर मृत्तिकातुल्य, मल कृम् िवा भस्म ही शेष रहने वाला जो शरीर है, हे मृढ़ ! तू ऐसे देह को किस कारण से मैं हूं ऐसा मानला है ? किस पापात्मा से व ठगा गया है।३२॥
( रेतो रक्त प्रसूतम्) माता पिता के शुक्र शोणित रूप धातुओं से उत्पन्न (जड़म्) स्वभाव से ही जड़ तथा (अशनेन चितम्) अन्नादिकों के भक्षण से वृद्ध अर्थात् बढ़ने वाला (षड् विकारम्) ‘जायतेऽस्ति वर्द्धते विपरिणमते पचीयते विनश्यतिच' इस यास्क मुनि कथित, उत्पत्ति आदि छः विकारों के सहित अर्थातू छः विकारों वाला (त्वक् अस्थि स्नायु क्रव्य अन्त्र मज्जा